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नागालैंड में जल सुरक्षा को नई दिशा—मिशन वाटरशेड की शुरुआत!

ग्रीष्मकालीन मूंग फसल में रसायनों का उपयोग क्यों कम करें??

 कृषि के क्षेत्र में बढ़ती आधुनिक तकनीकों और उन्नत किस्मों के बावजूद रासायनिक कीटनाशकों और नीदानाशकों का अत्यधिक उपयोग एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। विशेष रूप से ग्रीष्मकालीन मूंग फसल में इनका अधिक प्रयोग न केवल फसल की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, बल्कि पर्यावरण, मिट्टी और मानव स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है।

कृषि मंत्री श्री एदल सिंह कंषाना की अपील

किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री श्री एदल सिंह कंषाना ने किसानों से अनुरोध किया है कि वे ग्रीष्मकालीन मूंग फसल में कीटनाशकों और नीदानाशकों का न्यूनतम उपयोग करें। उन्होंने चेतावनी दी कि अत्यधिक रासायनिक दवाओं का प्रयोग मिट्टी की उर्वरता को नुकसान पहुंचाता है और यह जल स्रोतों को भी प्रदूषित करता है।

श्री कंषाना ने यह भी बताया कि कुछ किसान मूंग की फसल को जल्दी पकाने के लिए पेराक्वाट डायक्लोराइड जैसे नीदानाशकों का प्रयोग करते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक हानिकारक है। यह रसायन फसल में कई दिनों तक बना रहता है, जिससे इसे उपभोग करने वाले लोगों और जानवरों पर गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव पड़ सकते हैं।

रासायनिक दवाओं के दुष्प्रभाव

·         मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव: अत्यधिक कीटनाशकों और नीदानाशकों के सेवन से कैंसर, हृदय रोग और तंत्रिका तंत्र पर बुरा असर पड़ सकता है।

·         मिट्टी की उर्वरता में कमी: रासायनिक दवाओं का निरंतर उपयोग मिट्टी के जैविक तत्वों को नष्ट कर देता है, जिससे इसकी उर्वरता कम हो जाती है।

·         जल स्रोतों में प्रदूषण: अधिक मात्रा में कीटनाशक उपयोग से ये रसायन जल स्रोतों में मिल जाते हैं, जिससे पीने योग्य जल की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

·         पर्यावरण पर प्रभाव: कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से लाभकारी कीट और जीव-जंतु भी नष्ट हो जाते हैं, जिससे जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

ग्रीष्मकालीन मूंग: किसानों के लिए महत्वपूर्ण फसल

प्रदेश के नर्मदापुरम, हरदा, सीहोर, नरसिंहपुर, बैतूल, जबलपुर, विदिशा, देवास और रायसेन सहित कई जिलों में ग्रीष्मकालीन मूंग किसानों के लिए एक बेहतरीन तीसरी फसल के रूप में उभर रही है। वर्तमान में यह फसल 14.39 लाख हेक्टेयर में लगाई जा रही है और इसका कुल उत्पादन लगभग 20.29 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच चुका है। औसतन प्रति हेक्टेयर लगभग 1410 किलोग्राम उत्पादन प्राप्त हो रहा है, जो किसानों की आय में वृद्धि कर रहा है।

जैविक खेती अपनाने की आवश्यकता

राज्य सरकार द्वारा किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से प्रोत्साहित किया जा रहा है। जैविक खेती न केवल मिट्टी और पर्यावरण के लिए लाभकारी है, बल्कि इससे उत्पादित अनाज की बाजार में अधिक मांग भी रहती है। किसान जैविक विधियों को अपनाकर रासायनिक कीटनाशकों की जगह प्राकृतिक कीट नियंत्रण उपायों का उपयोग कर सकते हैं, जैसे:

·         नीम आधारित कीटनाशक

·         जीवाणु व जैविक खाद

·         फसल चक्र अपनाना

·         समेकित कीट प्रबंधन (IPM) तकनीक

किसानों को यह समझना होगा कि अधिक पैदावार के चक्कर में अत्यधिक रासायनिक कीटनाशकों और नीदानाशकों का उपयोग दीर्घकालिक रूप से लाभदायक नहीं है। सरकार और कृषि विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए जैविक और प्राकृतिक तरीकों को अपनाकर किसान न केवल अपनी फसल को सुरक्षित रख सकते हैं, बल्कि मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को भी संरक्षित कर सकते हैं।

कृषि मंत्री श्री कंषाना की यह अपील न केवल किसानों के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है कि स्वस्थ खेती से ही स्वस्थ भविष्य संभव है।

The News Grit, 19/03/2025

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