भारत में जातिगत संरचना को समझने के प्रयास लंबे समय से होते रहे हैं। ब्रिटिश शासन काल के दौरान 1881 से लेकर 1931 तक की जनगणनाओं में जातियों का विस्तार से दस्तावेजीकरण किया गया था। देश में आखिरी पूर्ण जाति आधारित जनगणना 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान ही कराई गई थी। इसके बाद, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1951 में जब आज़ाद भारत की पहली जनगणना हुई, तब सरकार ने एक बड़ा बदलाव करते हुए केवल अनुसूचित जातियों और जनजातियों की ही जातिगत गणना कराने का निर्णय लिया। हालांकि वर्षों बाद अब एक बार फिर केंद्र सरकार ने इस दिशा में पहल की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट बैठक में आगामी जनगणना में जाति आधारित आंकड़ों को शामिल करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव के अनुसार, पूर्ववर्ती सरकारें इस विषय पर स्पष्ट रुख नहीं अपना सकी और जाति जनगणना की बजाय कुछ राज्यों में आंशिक जाति सर्वेक्षण कराए गए, जो पूर्ण नहीं थे। अब सरकार द्वारा प्रस्तावित नई जनगणना में सभी वर्गों की जातिगत स्थिति को दर्ज करने की योजना है। यह निर्णय समाज के विव...
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