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डॉ. भीमराव अम्‍बेडकर अभ्यारण्य मध्यप्रदेश का 25वां वन्यजीव अभ्यारण्य!!!!

काले आलू की खेती: मध्य प्रदेश के किसानों के लिए एक नया लाभकारी रास्ता!!

आज के समय में, जब कृषि क्षेत्र में तकनीकी बदलाव और नवाचार की आवश्यकता है, मध्य प्रदेश के युवा किसान आकाश चौरसिया का नाम सफलता की मिसाल बनकर उभरा है। उन्होंने परंपरागत खेती से हटकर काले आलू की खेती शुरू की, और अब उनकी मेहनत और नये तरीकों की बदौलत वे अपनी लागत से चार गुना मुनाफा कमा रहे हैं। यह न केवल उनके व्यक्तिगत फायदे का कारण बना, बल्कि उनके इस प्रयास से कई अन्य किसान भी प्रेरित हो रहे हैं और काले आलू की खेती को अपनाने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं।
काले आलू: एक अनोखा और लाभकारी विकल्प
काला आलू, जो मुख्य रूप से दक्षिण अमेरिका में उगता है, पिछले कुछ सालों से भारत में तेजी से उगाया जा रहा है। यह आलू खास गुणों से भरपूर है, जिनमें जिब्रालिक अमाइनो और आयरन की अधिक मात्रा शामिल है। इसके कारण काले आलू की मांग विशेष रूप से शुगर और हृदय रोग के मरीजों के बीच बढ़ी है।
आकाश चौरसिया के अनुसार, काले आलू की कीमत सामान्य आलू से दो से तीन गुना अधिक होती है, जो किसानों को आर्थिक दृष्टि से आकर्षित करता है। इसकी उच्च मूल्यवृद्धि और स्वास्थ्य लाभ के कारण अब किसानों के बीच इसकी खेती लोकप्रिय हो रही है।
काले आलू की खेती कैसे करें
आकाश चौरसिया ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि काले आलू की खेती के लिए 8-10 क्विंटल बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है। यदि किसान प्राकृतिक तरीके से खेती करते हैं, तो एक एकड़ में 80 से 100 क्विंटल तक उत्पादन हो सकता है। मार्केट में इसकी कीमत 70 से 80 रुपये प्रति किलो के आसपास होती है, जिससे किसानों को 4 लाख रुपये तक की आय हो सकती है।
लागत और मुनाफा
काले आलू की खेती की लागत का हिसाब लगाते हुए, आकाश बताते हैं कि 8-10 क्विंटल बीज की कीमत लगभग 70-80 हजार रुपये होती है। इसके अलावा, 10 से 15 हजार रुपये खर्चीले खाद व अन्य खर्चे होते हैं। कुल मिलाकर एक एकड़ की खेती में लगभग 1 लाख रुपये की लागत आती है। यदि उत्पादन 80 क्विंटल भी होता है, तो इससे लगभग 5 लाख रुपये की फसल बन सकती है, जिससे किसान को 4 लाख रुपये का मुनाफा हो सकता है।
मल्टीलेयर फार्मिंग से मुनाफे में वृद्धि
आकाश चौरसिया ने मल्टीलेयर फार्मिंग (लेयर फार्मिंग) का उपयोग करके काले आलू की खेती को और लाभकारी बना लिया है। उन्होंने बताया कि इस फार्मिंग मॉडल में किसान आलू के पौधों के साथ-साथ क्रीपर फसल भी उगा सकते हैं। क्रीपर फसल आलू को पाले से बचाती है और इसे कई बीमारियों से भी सुरक्षित रखती है। इसके अलावा, क्रीपर फसल महज 80 दिन में तैयार हो जाती है, जिससे किसानों को एक और फसल का लाभ मिलता है।
बाजार में काले आलू की मांग और मूल्य
काले आलू की अंतर्राष्ट्रीय मांग काफी बढ़ी है, विशेष रूप से यूरोप में, जहां काले आलू के पाउडर का उपयोग पिज्जा, बर्गर और चाइनीज फूड में किया जाता है। आकाश चौरसिया काले आलू को डीहाइड्रेट करके पाउडर बनाते हैं, जो लगभग 450 रुपये प्रति किलो के आसपास बिकता है।
हालांकि, बाजार में इस उत्पाद की कीमत और गुणवत्ता को लेकर किसानों को एक चुनौती का सामना करना पड़ता है। इसलिए, उन्हें उन व्यापारियों से जुड़ने की आवश्यकता है, जो पहले से इस व्यवसाय में शामिल हैं और जो काले आलू के मूल्य और गुण को समझते हैं। खुले बाजार में इसे बेचने पर किसानों को सही मूल्य नहीं मिल पाता, क्योंकि इसकी गुणवत्ता और मांग के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
आकाश चौरसिया की यह कहानी यह साबित करती है कि तकनीकी प्रशिक्षण और नवाचार से परंपरागत खेती को एक नया आयाम दिया जा सकता है। काले आलू की खेती न केवल किसानों के लिए लाभकारी साबित हो रही है, बल्कि यह समाज के लिए स्वास्थ्य संबंधी कई फायदे भी लेकर आ रही है। इस तरह के आधुनिक खेती मॉडल से किसानों की आय में वृद्धि हो रही है, और वे पारंपरिक खेती से हटकर नए और लाभकारी विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं।
​The News Grit 17/02/2025                                                                                (सोर्स पी.आर.ओ सागर)
 

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