पर्यावरण, मानव, पशुधन और कृषि—इन सभी का स्वास्थ्य परस्पर जुड़ा हुआ है। इसी महत्वपूर्ण समन्वय को समझते हुए डॉ. हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसका विषय था "वन हेल्थ एवं एग्रो इकोलॉजी"। इस कार्यशाला का उद्देश्य कृषि एवं पशुपालन में बढ़ते रासायनिक उपयोग से होने वाले दुष्प्रभावों के प्रति जागरूकता फैलाना और मानव जीवन तथा पर्यावरण पर इसके असर को कम करने के उपाय तलाशना था।
पायलट
प्रोजेक्ट की शुरुआत सागर से
यह पायलट प्रोजेक्ट
केंद्र सरकार के वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया है,
जिसकी पहली पहल सागर जिले से की गई है। परियोजना का उद्देश्य कृषि,
पशुपालन, मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के बीच संतुलन
बनाकर एक सुरक्षित, स्वस्थ और टिकाऊ मॉडल तैयार करना है।
सागर जिले के
बंडा और रहली ब्लॉक के 20-20 गांवों को इस परियोजना
में शामिल किया गया है। इन गांवों में विभिन्न विभागों के विशेषज्ञ, किसानों और पशुपालकों को कृषि रसायनों, कीटनाशकों,
कृमिनाशक दवाइयों और रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग से होने वाले दुष्परिणामों
के प्रति जागरूक करेंगे। साथ ही, वैकल्पिक एवं टिकाऊ उपायों पर
अनुसंधान कर समाधान भी प्रस्तुत करेंगे।
खतरनाक
हो सकता है दवाओं का अत्यधिक उपयोग
वर्ष 2021
में डॉ. हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने
आया कि पशुओं में कृमिनाशक औषधियों का अत्यधिक इस्तेमाल न केवल पशु स्वास्थ्य पर नकारात्मक
असर डालता है, बल्कि गोबर और मूत्र के माध्यम से मिट्टी और जल
स्रोतों को भी प्रदूषित करता है। इससे कृषि भूमि के लाभकारी बैक्टीरिया नष्ट हो जाते
हैं, दूध की गुणवत्ता गिरती है और अंततः ये प्रभाव मानव स्वास्थ्य
तक पहुंच जाते हैं।
इसी प्रकार,
कृषि में अंधाधुंध रासायनिक कीटनाशकों और खादों के उपयोग से भूमि की
उर्वरता कम हो रही है, जल स्रोत दूषित हो रहे हैं और फसलें विषाक्त
होती जा रही हैं।
समाधान
की दिशा में कार्य
इस कार्यशाला के दौरान विभिन्न वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने व्यापक रणनीति पर चर्चा की, जिससे सतत कृषि और पशुपालन के लिए सुरक्षित और प्राकृतिक उपाय अपनाए जा सकें।
प्रमुख विचार बिंदु इस प्रकार रहे—
✔️ जैविक खाद और प्राकृतिक कीटनाशकों का प्रोत्साहन।
✔️ पशुपालन में औषधियों का सीमित और वैज्ञानिक उपयोग।
✔️ किसानों और पशुपालकों के लिए जागरूकता कार्यक्रम।
✔️ पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन और विश्लेषण।
आगे
की योजना
इस पायलट प्रोजेक्ट
की अवधि लगभग 8 माह रखी गई है, जिसके अंतर्गत तैयार रिपोर्ट के आधार पर इसे पूरे प्रदेश में लागू करने की
योजना है। इसके क्रियान्वयन में विभिन्न विभागों के वैज्ञानिक, जैसे कि पशुपालन, कृषि, स्वास्थ्य
एवं पर्यावरण विभाग, मिलकर कार्य करेंगे।
विशेषज्ञों में
डॉ. जी.के. वर्मा, स्टेफनी (जीआईजेड प्रबंधक),
डॉ. अजय रामटेके, डॉ. बकुल लाड, डॉ. एलिज़ाबेथ थॉमस, डॉ. पी. राजपूत, श्री कपिल पगनिस, डॉ. नीलेश शाह सहित कई अधिकारी एवं
शोधकर्ता शामिल हैं।
वन हेल्थ एवं
एग्रो इकोलॉजी परियोजना न केवल किसानों और पशुपालकों को जागरूक करने का माध्यम है,
बल्कि एक स्वस्थ समाज और सुरक्षित पर्यावरण की दिशा में भी महत्वपूर्ण
पहल है। यदि इस मॉडल को सफलतापूर्वक लागू किया जाता है, तो यह
पूरे प्रदेश के लिए एक उदाहरण बन सकता है कि किस प्रकार वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पारंपरिक
ज्ञान के मेल से सतत विकास की ओर बढ़ा जा सकता है।
(Source – PRO Sagar)
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