मध्य प्रदेश: सरकार की योजना में आलू के बीज की कालाबाजारी, सस्ता बीज बन रहा रसोई का हिस्सा


मध्य प्रदेश: सरकार की योजना में आलू के बीज की कालाबाजारी, सस्ता बीज बन रहा रसोई का हिस्सा ||

सागर, मध्य प्रदेश: मध्यप्रदेश में अभी सब्जी प्रदर्शन कार्यक्रम (आलू) योजना के तहत 4 जिलों शिवपुरी, उज्जैन, सागर, शाजापुर जिलों के लिए लक्ष्य जारी किए गए हैं | इन 4 जिलों के लिए 600 इकाई का लक्ष्य रखा गया है | योजना केवल अनुसूचित जाति के कृषक के लिए है | जिलों के अनुसार लक्ष्य इस प्रकार है :- शिवपुरी – 200, उज्जैन–200, सागर–183 संख्या, शाजापुर–17। किसानों को आलू प्रदर्शनी कार्यक्रम के तहत प्रमाणित बीज के साथ-साथ खेती के लिए आवश्यक अन्य सामग्री भी दी जाएगी | यह सभी सामग्री किसानों के लिए अनिवार्य है | किसानों प्रमाणित आलू बीज के साथ, बैटरी कम हैण्ड स्प्रेयर पम्प, प्लास्टिक केट इत्यादि सामग्री भी दी जाएगी|

    लेकिन राज्य सरकार द्वारा किसानों को सस्ती दरों पर आलू का बीज उपलब्ध कराने की योजना में गड़बड़ियों की खबरें सामने आ रही हैं। सागर जिले में एक व्यक्ति को सरकारी योजना के तहत वितरित सस्ता आलू रसोई में उपयोग होने के लिए बेचते हुए देखा गया। यह घटना आलू के बीज की आपूर्ति और वितरण में गंभीर अनियमितताओं की ओर इशारा करती है। अभी तक इस तरह की कालाबाजारी के आरोप राज्य के खाद्य विभाग के अधीन कार्यरत सरकारी आपूर्ति प्रणाली पर होते थे, लेकिन अब लापरवाही का यह पिशाच अपने पैर पसार रहा है।

मध्य प्रदेश सरकार की इस योजना का उद्देश्य किसानों को उन्नत किस्म के आलू का बीज 25 रूपये प्रति किलो दर से उपलब्ध कर रही है ताकि राज्य में आलू की पैदावार बढ़ाई जा सके और किसानों की आय में सुधार हो। योजना के तहत किसानों को आलू का बीज बाजार की तुलना में कम कीमत पर मिल रहा था। लेकिन सागर जिले में इस योजना की आड़ में कालाबाजारी के मामले ने सरकारी योजनाओं में लापरवाही की ओर ध्यान खींचा है।                      

सागर में ठेले पर बिकता हुआ बीज का आलू 

                           

कालाबाजारी का मामला

सागर शहर में यह मामला तब सामने आया जब स्थानीय लोगों ने एक व्यक्ति को सरकारी बीज वाला आलू सामान्य बाजार में बेचते हुए देखा। यह आलू, जो किसानों के लिए बीज के रूप में उपयोग किया जाना था, रसोई के उपयोग के लिए बेचा जा रहा है। आलू का यह सस्ता स्टॉक योजना के तहत किसानों तक पहुंचाने के बजाय निजी विक्रेताओं के हाथों में पहुंच रहा है, जो इसे रसोई में खाने के आलू के रूप में बेच रहे हैं।

किसानों पर इसका असर 

इस योजना से किसानों को सस्ती दरों पर बीज मिलने की उम्मीद थी, लेकिन अब उन्हें बाजार से महंगे दामों पर बीज खरीदने को मजबूर होना पड़ सकता है। अगर यह अनियमितताएँ जारी रहीं, तो इससे किसानों के फसल  लागत बढ़ जाएगी और मुनाफे में कमी आएगी।" शायद इन्ही सब छोटे छोटे अनियमितताएँ के बजह से किसान कर्ज में डूब जाता है जिस कारण आये दिन किसान आत्महत्या जैसे कदम उठा ले रहे है | जो की चिंता का विषय है।

अगर इस प्रकार की कालाबाजारी के कारण छोटे और सीमांत किसान, जो सरकारी योजनाओं पर निर्भर हैं, सबसे अधिक प्रभावित होंगे। उन्हें या तो महंगा बीज खरीदना पड़ेगा या फिर खराब गुणवत्ता वाले बीज से काम चलाना होगा, जिससे उनकी फसल उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ सकती है।

आगे की राह

सरकार को इस मामले की गहन जांच कर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए ताकि ऐसी अनियमितताएं दोबारा न हो। किसानों की आय को बढ़ाने और कृषि उत्पादन को सुधारने के लिए ऐसी योजनाओं की सफलता आवश्यक है, लेकिन जब तक इनके क्रियान्वयन में पारदर्शिता और ईमानदारी नहीं होगी, तब तक इनका वास्तविक लाभ किसानों तक नहीं पहुंच पाएगा।

सरकार को ऐसे कदम उठाने चाहिए जिससे कालाबाजारी पर लगाम लग सके। इसके लिए योजना के हर चरण की निगरानी और किसानों से सीधे संवाद की जरूरत है। स्थानीय स्तर पर जागरूकता अभियान चलाकर भी किसानों को बताया जा सकता है कि वे कैसे इस योजना का सही तरीके से लाभ उठा सकते हैं और किसी भी अनियमितता की शिकायत कैसे कर सकते हैं। यदि सरकार इन मुद्दों पर ध्यान देती है और त्वरित कार्रवाई करती है, तो यह योजना किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है।



- The News Grit
- 12/10/2024


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