जलवायु
परिवर्तन के कारण विस्थापन का सामना कर रहे छोटे द्वीपीय देशों के लिए एक ऐतिहासिक
पहल की शुरुआत हो चुकी है। ऑस्ट्रेलिया सरकार ने "पैसिफिक एंगेजमेंट
वीज़ा" नामक एक विशेष जलवायु वीज़ा कार्यक्रम की घोषणा की है,
जिसका पहला चरण 16 जून से शुरू हो चुका है। यह
वीज़ा कार्यक्रम तुवालु जैसे जलवायु-संवेदनशील देशों के नागरिकों को स्थायी निवास
की सुविधा देगा।
ऑस्ट्रेलिया
और तुवालु के बीच "फालेपिली यूनियन" नामक द्विपक्षीय समझौते के तहत शुरू
की गई इस योजना का उद्देश्य है जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते समुद्र स्तर से
प्रभावित तुवालुवासियों को सुरक्षित और गरिमामय जीवन प्रदान करना। यह विश्व का
पहला ऐसा समझौता है जिसमें किसी देश ने कानूनी रूप से यह किया है कि यदि जलवायु
परिवर्तन के कारण तुवालु की भूमि समुद्र में समा जाती है, तब भी उसकी संप्रभुता और राष्ट्र के रूप में अस्तित्व बना रहेगा।
क्या
है यह वीज़ा योजना?
इस वीज़ा
कार्यक्रम के अंतर्गत हर साल 280 तुवालु
नागरिकों को यादृच्छिक लॉटरी (random ballot) के ज़रिए चयनित
किया जाएगा। इस चयन प्रक्रिया के लिए आवेदन शुल्क 25
ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (लगभग ₹1,400) है और 2025 की पहली लॉटरी के लिए आवेदन 18 जुलाई तक खुले
रहेंगे।
27
जून तक, कुल 1,124 आवेदन प्राप्त हो
चुके हैं, जिनमें कुल 4,052 लोग
(परिवारजनों सहित) शामिल हैं। यह आंकड़ा तुवालु की कुल जनसंख्या — जो 2022 की जनगणना के अनुसार मात्र 10,643 है — का लगभग 38% दर्शाता है, जिससे इस योजना की लोकप्रियता और
आवश्यकता स्पष्ट होती है।
वीज़ा
धारकों को क्या सुविधाएं मिलेंगी?
"पैसिफिक एंगेजमेंट वीज़ा" धारकों को ऑस्ट्रेलिया में स्थायी निवास (permanent
residency) प्राप्त होगी। इसके अतिरिक्त, उन्हें
कई प्रमुख सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाएंगी:
·
ऑस्ट्रेलिया
प्रत्येक वर्ष तुवालू के 280 नागरिकों को स्थायी
निवास देगा, ताकि वे जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न खतरे
से बच सकें। यह वीज़ा random ballot के माध्यम से जारी किया
जाएगा।
·
तुवालू की संप्रभुता,
क्षेत्रीय अखंडता और राज्य का दर्जा समुद्र तल में डूबने की स्थिति
में भी मान्य रहेगा।
·
ऑस्ट्रेलिया को यह
अधिकार प्राप्त होगा कि वह तुवालू की सुरक्षा और रक्षा जरूरतों में सहयोग करे। इसमें
ऑस्ट्रेलिया को तुवालू की रक्षा नीति में प्रमुख भूमिका देने का संकेत है,
लेकिन यह तुवालू की सहमति पर आधारित होगा।
·
ऑस्ट्रेलिया तुवालू
में सस्टेनेबल इन्फ्रास्ट्रक्चर (जैसे समुद्रदीवार, जल प्रबंधन) के विकास में आर्थिक और तकनीकी सहायता देगा।
·
ऑस्ट्रेलिया तुवालू
को प्राकृतिक आपदाओं से उबरने के लिए आपातकालीन सहायता और राहत सामग्री तत्काल
उपलब्ध कराएगा।
·
तुवालू के नागरिक जो
ऑस्ट्रेलिया में स्थायी निवास प्राप्त करेंगे, वे
अपनी मूल नागरिकता और सांस्कृतिक पहचान बनाए रख सकेंगे।
·
किसी भी सैन्य या
सुरक्षा रणनीति में दोनों देशों की सहमति आवश्यक होगी। तुवालू की अनुमति के बिना
कोई सैन्य उपस्थिति नहीं होगी।
·
‘फालेपिली’ एक
तुवालूवासी सांस्कृतिक मूल्य है, जिसका अर्थ है पड़ोसी धर्म,
आपसी देखभाल और सम्मान। समझौते का नाम और मूल भावना इसी सिद्धांत से
प्रेरित है।
·
चाइल्डकेयर सब्सिडी।
·
स्कूल,
विश्वविद्यालय और तकनीकी शिक्षा संस्थानों में ऑस्ट्रेलियाई
नागरिकों के बराबर शुल्क पर शिक्षा।
·
देश के अंदर-बाहर
स्वतंत्र आवाजाही।
इन सेवाओं का
उद्देश्य केवल आश्रय नहीं, बल्कि तुवालुवासियों
को सम्मानजनक और समावेशी जीवन प्रदान करना है।
तुवालु:
समुद्र में डूबता देश
तुवालु एक
प्रशांत महासागर का द्वीपीय राष्ट्र है जो समुद्र तल से औसतन महज 5 मीटर (16 फीट) ऊंचा है। NASA के
वैज्ञानिकों की मानें तो 2050 तक तुवालु की अधिकांश भूमि और
आधारभूत ढांचा समुद्र के उच्च ज्वार स्तर के नीचे चला जाएगा। इसका अर्थ है कि देश
के अस्तित्व पर गंभीर संकट मंडरा रहा है।
जलवायु
परिवर्तन से उत्पन्न इस संकट ने तुवालु को "पहला संभावित जलवायु शरणार्थी
राष्ट्र" बना दिया है। इस संदर्भ में ऑस्ट्रेलिया का यह कदम वैश्विक स्तर पर
मानव अधिकारों और जलवायु न्याय के प्रति एक नई संवेदनशीलता का प्रतीक बन रहा है।
अंतरराष्ट्रीय
प्रतिक्रिया
तुवालु के
प्रधानमंत्री फेलेती टियो ने इस पहल को "इतिहास में पहली बार किसी देश द्वारा
जलवायु आपदा से घिरते राष्ट्र की संप्रभुता की कानूनी गारंटी" बताया।
उन्होंने कहा, "यह सिर्फ वीज़ा नहीं है,
यह हमारे अस्तित्व को स्वीकार करने और उसे संरक्षित रखने की वैश्विक
प्रतिबद्धता है।"
मानवाधिकार
संगठनों और पर्यावरण विशेषज्ञों ने भी इस पहल की प्रशंसा की है,
पर साथ ही यह चेतावनी भी दी है, कि यदि बड़े
देशों ने अपने कार्बन उत्सर्जन को सीमित नहीं किया, तो
तुवालु जैसे देशों के लिए कोई भी पहल पर्याप्त नहीं होगी।
ऑस्ट्रेलिया
की यह जलवायु वीज़ा पहल उन लाखों लोगों के लिए एक आशा की किरण है जो जलवायु
परिवर्तन के कारण अपने घर-परिवार, परंपराएं और
जीवनशैली खोने की कगार पर हैं। यह कदम अन्य विकसित देशों के लिए भी एक उदाहरण बन
सकता है कि कैसे वे जलवायु न्याय को केवल शब्दों तक सीमित न रखकर व्यवहारिक और
मानवतावादी समाधान प्रस्तुत करें। इस पहल के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि अब
जलवायु संकट सिर्फ एक पर्यावरणीय समस्या नहीं है, बल्कि यह
एक मानव संकट बन चुका है — जिसमें न्याय, समानता और गरिमा
जैसे मूल्यों की पुनर्परिभाषा जरूरी हो गई है।
तुवालू
के बारे में रोचक तथ्य:
तुवालू तीन रीफ
द्वीपों और छ: एटोल से बना देश है जो 5° और 10°
दक्षिण के अक्षांश और 176° और
180°
के देशांतर के बीच फैले हुए हैं। क्षेत्रफ़ल के लिहाज से दुनिया का
चौथा सबसे छोटा देश है, जोकि 26 वर्ग
किलोमीटर में सीमित है (केवल वेटिकन सिटी, मोनाको, और नाउरू इससे छोटे हैं।)। कुल जनसंख्या लगभग 10,643 है। राजधानी फुनाफुती (Funafuti) है, यह एक संकीर्ण एटोल है और देश की अधिकांश जनसंख्या यहीं रहती है। कुल 9 द्वीपों का समूह, इनमें से 3
द्वीप और 6 एटोल हैं। समुद्र तल से इन द्वीपों की ऊंचाई केवल
4.6 मीटर (15 फीट) है।
तुवालू 5
सितंबर 2000 को संयुक्त राष्ट्र का 189वाँ
सदस्य बना। तुवालू की कोई अपनी मुद्रा नहीं है, और न ही कोई
सेना। यह अपनी वित्तीय और सामरिक आपूर्ति के लिए क्रमशः ऑस्ट्रेलियन डॉलर (AUD)
और ऑस्ट्रेलियन रक्षा व्यवस्था पर निर्भर है। तुवालूअन और अंग्रेज़ी
दोनों भाषाएं आधिकारिक हैं, पर आम बोलचाल में तुवालूअन
प्रमुख है।
अधिकाधिक लाभ
से प्रेरित और अधिकाधिक उपभोग करने की प्रवृत्ति आज तुवालू जैसे तटीय व द्वीपीय
देशों के अस्तित्व के लिए संकट का विषय बन गया है। आज तुवालू अंतरराष्ट्रीय चिंता
का केंद्र है। संयुक्त राष्ट्र, IPCC और
पर्यावरण समूहों के लिए तुवालू जलवायु न्याय के लिए प्रतीक बन चुका है।
The News Grit, 30/06/2025
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