Skip to main content

ओलंपिक स्वर्ण से सेना तक: नीरज चोपड़ा बने लेफ्टिनेंट कर्नल (मानद)!!

हूल दिवस पर विशेष : आजादी की पहली हुंकार - संथाल क्रांति की अमर गाथा!!

30 जून, 1855 – भोगनाडीह, झारखंड के जनजातीय इतिहास में 30 जून एक ऐसा दिन है जिसे सिर्फ तारीख नहीं, एक ज्वाला की तरह याद किया जाता है। यही वह दिन था जब संथाल समाज ने अन्याय, शोषण और दमन के खिलाफ एक सामूहिक विद्रोह की चिंगारी सुलगाई, जो आज हूल दिवस के रूप में हमारे आत्मसम्मान और संघर्ष की स्मृति बन चुका है।

भोगनाडीह से उठी स्वतंत्रता की पहली चिंगारी

1855 में आज ही के दिन झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र के भोगनाडीह गाँव से एक ऐतिहासिक आंदोलन की शुरुआत हुई। यह कोई मामूली विरोध नहीं था, बल्कि यह वह प्रचंड प्रतिकार था जिसमें सिद्धो, कान्हू, चांद और भैरव – एक ही मां की चार संतानें – अपने हजारों साथियों के साथ ब्रिटिश सत्ता, महाजनी शोषण और जमींदारी उत्पीड़न के विरुद्ध खड़े हुए।

इस विद्रोह को "हूल" कहा गया, जिसका संथाली भाषा में अर्थ है – बग़ावत या विद्रोह। यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐसा अध्याय है जो 1857 की क्रांति से भी दो साल पहले लिखा गया था।

दमन, धोखा और दासता का विस्तार

1765 में जब मुग़ल सम्राट शाह आलम ने बंगाल, बिहार और ओडिशा की दीवानी अंग्रेजों को सौंप दी, तब से इस क्षेत्र में औपनिवेशिक शोषण की जड़ें जमने लगी थीं। 1793 में स्थायी बंदोबस्ती प्रणाली लागू हुई, जिससे जमींदारों और महाजनों को संथालों की जमीन हथियाने का अधिकारिक औजार मिल गया। संथाल, जो जंगल साफ़ कर खुद अपनी मेहनत से ज़मीन को उपजाऊ बनाते थे, उन्हें अब जबरन लगान चुकाना पड़ता था। उन्हें धोखे से कर्ज़ के जाल में फंसाया जाता और ज़मीन पर जबरन कब्जा कर लिया जाता। महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, पारंपरिक व्यवस्थाओं में हस्तक्षेप और न्याय के नाम पर घोर अन्याय – यह सब मिलकर एक फूटते ज्वालामुखी की भूमिका निभा रहा था।

13 जून से 30 जून तक: एक संगठित क्रांति की तैयारी

13 जून, 1855 को भोगनाडीह में हजारों संथालों की एक सभा हुई, जिसमें यह निश्चय लिया गया कि अब वे और अत्याचार सहन नहीं करेंगे। ईश्वर ने उन्हें सम्मान के साथ जीने का अधिकार दिया है – यह उनके नेतृत्वकर्ता सिद्धो और कान्हू ने लोगों से कहा। यह एक सामाजिक, नैतिक और आत्म-सम्मान आधारित विद्रोह था। 30 जून को लगभग 35,000 संथाल योद्धा, पारंपरिक हथियारों, तीर-धनुषों के साथ इकट्ठा हुए। उनका उद्देश्य था - कोलकाता जाकर ब्रिटिश अधिकारियों के सामने अपनी बात रखना। लेकिन रास्ते में उन्होंने जुल्मी महाजनों और पुलिस अधिकारियों का सामना किया।

क्रांति की ज्वाला और संघर्ष की कहानी

इस विद्रोह के दौरान एक घटना ने पूरे आंदोलन को तीव्र रूप दे दिया। दारोगा महेश लाल दत्त और उसका साथी महाजन केनाराम भगत कुछ संथालों को गिरफ्तार कर घोड़े से बांधकर ले जा रहे थे। जब क्रांतिकारी संथालों ने इसका विरोध किया, तो दारोगा ने उल्टा कान्हू को धमकाया. इसके जवाब में, गुस्से से भरे संथालों ने दारोगा और महाजन की हत्या कर दी। इसके बाद, सिद्धो-कान्हू की हुंकार गूंज उठी – “अब कोई सरकार नहीं, अब संथालों का राज है।” यह केवल एक क्रांति नहीं थी, यह न्याय और गरिमा की लड़ाई थी।

ब्रिटिश दमन और बलिदान की गाथा

ब्रिटिश हुकूमत इस विद्रोह से बुरी तरह हिल गई थी। उन्होंने विद्रोह को कुचलने के लिए सेना को खुली छूट दी और जमींदारों की सहायता से हजारों संथालों का नरसंहार किया। इतिहासकारों के अनुसार, 10,000 से अधिक संथाल इस संघर्ष में मारे गए। सिद्धो, चांद और भैरव को अंग्रेजों ने मार गिराया और कान्हू को गिरफ्तार कर लिया गया। 20 दिसंबर 1855 को दिए गए कान्हू के बयान ने स्पष्ट किया कि यह कोई डकैती या अपराध नहीं था, यह अत्याचार के खिलाफ न्याय का युद्ध था।

संथाल परगना का गठन – एक सियासी समायोजन

इस विद्रोह से ब्रिटिश हुकूमत को संथालों की ताकत का अंदाज़ा हो गया था। विद्रोह को शांत करने के लिए उन्होंने 1856 में संथाल परगना का गठन किया और मांझी-मंडलों को कुछ पुलिस अधिकार भी दिए। पर यह महज़ शोषण के खिलाफ हुई बगावत की आग पर पानी डालने की कोशिश थी, जिसे समय कभी बुझा नहीं सका।

हूल दिवस का संदेश: स्वतंत्रता संग्राम का पहला अध्याय

संथाल विद्रोह सिर्फ संथालों का आंदोलन नहीं था, यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम की नींव थी। यह संविधान, भूमि, न्याय और आत्म-सम्मान के लिए उठी एक ऐसी हुंकार थी जिसमें एक मां के चार बेटों ने अपने प्राण बलिदान कर दिए। आज जब हम हूल दिवस मना रहे हैं, यह जरूरी है कि हम इस महान बलिदान को स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम अध्याय के रूप में मान्यता दें। सिद्धो, कान्हू, चांद और भैरव के संघर्ष को केवल स्मृति में नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास की मुख्यधारा में स्थान मिलना चाहिए। "हूल" कोई बीता हुआ पल नहीं, बल्कि एक जीवंत चेतना है – अन्याय के विरुद्ध उठा एक जन-संघर्ष।"

The News Grit, 30/06/2025  

Comments

Popular posts from this blog

राष्ट्रीय गणित दिवस के उपलक्ष्य में रानी दुर्गावती महाविद्यालय में आयोजित होगा भव्य कार्यक्रम!!

बालाघाट – रानी दुर्गावती शासकीय महाविद्यालय परसवाड़ा में इस वर्ष राष्ट्रीय गणित दिवस (22 दिसंबर) के उपलक्ष्य में एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। यह कार्यक्रम मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् (MPCST) और राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं प्रौद्योगिकी परिषद् (NCSTC) द्वारा प्रायोजित किया गया है। श्रीनिवास रामानुजन की जयंती पर उनके गणित के क्षेत्र में किए गए अद्वितीय योगदानों को समर्पित यह आयोजन 19 और 20 दिसंबर को होगा। प्राचार्य डॉ. एल एल घोरमारे ने कार्यक्रम की रूपरेखा साझा करते हुए बताया कि 19 दिसंबर को गणित के क्षेत्र में श्रीनिवास रामानुजन के योगदानों पर आधारित कई गतिविधियाँ आयोजित की जाएंगी। इनमें पोस्टर प्रेजेंटेशन, प्रश्नमंच, और भाषण प्रतियोगिता शामिल हैं। इन गतिविधियों के माध्यम से विद्यार्थियों को गणित की महत्ता और श्रीनिवास रामानुजन की खोजों के बारे में जानकारी मिलेगी। 20 दिसंबर को मुख्य कार्यक्रम में गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जीवन इतिहास और उनके योगदान पर एक विशिष्ट अतिथि द्वारा व्याख्यान दिया जाएगा। इसके अलावा, उनके जीवन और कार्यों पर आधारित एक वृत्...

स्टूडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम: रानी दुर्गावती महाविद्यालय परसवाड़ा में सफल आयोजन!!

दिनांक 20 जनवरी 2025 को रानी दुर्गावती शासकीय महाविद्यालय, परसवाड़ा के वनस्पति विभाग द्वारा एक उल्लेखनीय स्टूडेंट एक्सचेंज कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में शासकीय अरण्य भारतीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बैहर के 35 विद्यार्थी और प्राध्यापकगण शामिल हुए। इस कार्यक्रम की शुरुआत महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. एल. एल. घोरमारे द्वारा स्टूडेंट एक्सचेंज गतिविधियों के महत्व पर जानकारी देने से हुई। आइक्यूएसी इंचार्ज डॉ. अरुण वैद्य ने विद्यार्थियों को इस प्रकार के कार्यक्रमों से मिलने वाले लाभों को साझा किया। वनस्पति विभाग की प्रमुख डॉ. जय श्री सूर्यवंशी ने माइक्रोऑर्गेनिज़्म कल्चर और प्रयोगशाला उपकरणों की विस्तृत जानकारी प्रदान की। इसी क्रम में बैहर महाविद्यालय की डॉ. पूजा गुप्ता ने क्यूआर कोड इंटर्नशिप प्रोजेक्ट के माध्यम से छात्रों को नई तकनीकों से अवगत कराया। भौतिक शास्त्र विभाग से श्रीमती रंजना कुशवाहा ने शैक्षणिक गतिविधियों के विकास में इस प्रकार के कार्यक्रमों की महत्ता पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में छात्रों के बीच आपसी ज्ञान-विनिमय के साथ-साथ डेमोंस्ट्रेशन सत्र आयोजित किए गए। रा...

प्रोजेक्ट आरोहण: NHAI की नई योजना, लेकिन किसके लिए?

राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ( NHAI) ने एक महत्वपूर्ण सामाजिक पहल करते हुए टोल प्लाज़ा कर्मचारियों के बच्चों की शिक्षा और करियर निर्माण के लिए ‘प्रोजेक्ट आरोहण’ की शुरुआत की है। इस योजना का शुभारंभ एनएचएआई के अध्यक्ष श्री संतोष कुमार यादव ने नई दिल्ली स्थित मुख्यालय में किया। इस अवसर पर वर्टिस इंफ्रास्ट्रक्चर ट्रस्ट के कार्यकारी निदेशक एवं संयुक्त सीईओ डॉ. जफर खान और एनएचएआई के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित रहे। शिक्षा तक समान पहुँच देने का प्रयास एनएचएआई ने वर्टिस इंफ्रास्ट्रक्चर ट्रस्ट के साथ मिलकर यह योजना शुरू की है , जिसका मकसद टोल प्लाज़ा कर्मचारियों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना है। इस पहल का उद्देश्य वित्तीय बाधाओं को दूर करना , सामाजिक-आर्थिक भेदों को कम करना और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के छात्रों , जिनमें निम्न-आय वाले परिवारों की लड़कियाँ , पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी तथा अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति , अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र शामिल हैं , के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच प्रदान करना है। एनएचएआई का मानना है कि शिक्षा ही वह साध...