ब्रिक्स 2025 सम्मेलन (17वाँ शिखर सम्मेलन) 6–7 जुलाई 2025 को रियो डी जनेरियो, ब्राज़ील में आयोजित हुआ। सम्मेलन का मुख्य विषय था 'इंक्लूसिव एंड सस्टेनेबल ग्लोबल साउथ', जिसका उद्देश्य वैश्विक दक्षिण देशों के लिए अधिक समावेशी, न्यायपूर्ण और सतत शासन ढाँचे की स्थापना करना है।
परिवर्तनशील विश्व व्यवस्था में ब्रिक्स के लक्ष्य
ब्रिक्स समुदाय ने इस वर्ष की बैठक में बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की दिशा में स्पष्ट संकल्प व्यक्त किया। अमरीका की संरक्षणवादी नीतियों और डॉलर के प्रभुत्व के बढ़ते प्रभाव को चुनौती देते हुए, सम्मेलन में निम्नलिखित प्रमुख लक्ष्यों को प्राथमिकता दी गई:
1 ग्लोबल गवर्नेंस सुधार - संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं में विकासशील देशों के लिए अधिक प्रतिनिधित्व की मांग।
2 वित्तीय स्वायत्तता - सदस्यों के बीच लोकल करेंसी में व्यापार बढ़ाने और SWIFT (सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन) जैसे सिस्टम से निर्भरता कम करने की पहल, जिसमें "ब्रिक्स पे" और क्रॉस-बॉर्डर पेमेंट सिस्टम पर चर्चा शामिल रही।
3 बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली का समर्थन - WTO के सिद्धांतों को सशक्त बनाने की प्रतिबद्धता, एकतरफ़ा शुल्कों और व्यापार अवरोधों का विरोध।
4 तकनीकी और डिजिटलीकरण पहल - AI विनियमन, डिजिटल अर्थव्यवस्था और बिग डेटा प्लेटफार्मों पर ध्यान, जो डिजिटल विभाजनों को पाटने और प्रतिस्पर्धा बढ़ाने में सहायक हैं।
5 जलवायु कार्रवाई - COP30 में “ब्रिक्स क्लाइमेट लीडरशिप एजेंडा”, क्लाइमेट फाइनेंस फंड प्रस्ताव और कार्बन-मार्केट साझेदारी का समर्थन।
शोध‑अनुसंधान एवं नवाचार रणनीतियाँ
ब्रिक्स सम्मेलन में शोध और विज्ञान आधारित नवाचार को मौलिक प्राथमिकता दी गई: BRICS STI (विज्ञान तकनीकी, नवाचार) फ्रेमवर्क प्रोग्राम के विकास तथा टेलीकॉम, सैटेलाइट, AI और बायोमेडिकल क्षेत्रों सहित क्रिटिकल रिसर्च ट्रांसवर्सल में सहयोग को बढ़ावा देने का प्रस्ताव रखा गया।
ब्रिक्स नेटवर्क यूनिवर्सिटी, TVET (टेक्निकल एंड वोकेशनल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग) योजनाएँ, तथा डिजिटल एजुकेशन कॉपरेशन मैकेनिज्म के माध्यम से शैक्षणिक सहयोग और छात्र विनिमय को बढ़ाया गया।
ब्रिक्स वर्किंग ग्रुप ऑन रिसर्च इंफ्रास्ट्रक्चर एंड मेगा साइंस प्रोजेक्ट ने प्रस्तावित मेगासाइंस परियोजनाओं, जैसे न्यूक्लियर रिसर्च इंस्टिट्यूट्स, Synchrotrons, और Interdisciplinary रिसर्च लैब्स पर चर्चा की। अकेडमिक फोरम ब्राजीलिया (25–26 जून 2025) में कुल 180 सहयोग मंचों का विश्लेषण जारी किया गया, जिसमें वैश्विक स्वास्थ्य, AI, जलवायु, व्यापार और वित्त, संस्थानात्मक विकास आदि क्षेत्रों में विशेषज्ञ चर्चा हुयी।
रूस की पहल: “BRICS विज्ञान एवं शोध कोश” की संकल्पना जिसमें देश-विशिष्ट रिसर्च डेटा, इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्टार्टअप्स और जलवायु शोध केंद्र शामिल हैं। इस प्रकार, शोध-आधारित सहयोग का मध्यस्थाधारित रूप से एक व्यापक वैज्ञानिक रूटमैप तैयार किया गया जो एक ओर नवाचारी परियोजनाओं (Megascience, AI, बायोमेडिकल, सैटेलाइट इत्यादि) को साकार करेगा, और दूसरी ओर शैक्षणिक सहयोग नेटवर्क यूनिवर्सिटीज, टीकाकरण शिक्षा को तीव्र करेगा।
आर्थिक और वित्तीय पहलों का विश्लेषण
न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB): कोलंबिया और उज़रबैगिस्तान को शामिल कर सदस्यों की संख्या 11 हुई। NDB ने अब तक 120+ परियोजनाओं में $40 बिलियन निवेश किया है, खासकर ऊर्जा, इंफ्रास्ट्रक्चर, पर्यावरण संरक्षण में। ब्रिक्स पे एवं क्रॉस बोर्डर पेमेंट सिस्टम सदस्य देशों में तेज, सस्ता और स्थानीय मुद्रा आधारित भुगतान सुविधा के लिए सहमति बनी। रूस द्वारा प्रस्तावित ब्रिक्स निवेश प्लेटफ़ॉर्म, अनाज एक्सचेंज, कार्बन‑मार्केट सहयोग, टैक्स सीक्रेटेरिएट और ट्रेड विवाद पर परामर्श मंच जैसे विचार चर्चा में लाए गए। इन आर्थिक पहलों का विश्लेषण यह दर्शाता है कि ब्रिक्स न केवल पारम्परिक विकास योजनाओं पर कार्य कर रहा है बल्कि स्वायत्त वित्तीय ढाँचे के जरिये वैश्विक आर्थिक विनियमन में भी सक्रिय भूमिका निभाना चाहता है।
ब्रिक्स और डी-डॉलराइजेशन की स्थिति:
ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका और अब नए सदस्य) वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में बहुध्रुवीयता को बढ़ावा देने की दिशा में अग्रसर है। इसका एक प्रमुख उद्देश्य अमेरिकी डॉलर की एकाधिकारवादी भूमिका को चुनौती देना है। डी-डॉलराइजेशन यानी अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को घटाने की दिशा में ब्रिक्स द्वारा कई पहलें की गई हैं। जैसे कि सदस्य देशों के बीच आपसी व्यापार में स्थानीय मुद्राओं का उपयोग, ब्रिक्स की अपनी मुद्रा या भुगतान व्यवस्था की संभावना, और न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) की पूंजीकरण संरचना में डॉलर के स्थान पर अन्य मुद्राओं को वरीयता देना। डी-डॉलराइजेशन कोई तात्कालिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह लंबी रणनीतिक दिशा है। रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद रूस-चीन व्यापार में युआन का बढ़ता उपयोग, भारत-ब्राज़ील के बीच रुपया-रीयाल विनिमय की चर्चा, तथा अफ्रीकी देशों की मुद्रा स्वायत्तता की मांग इस दिशा में संकेत देते हैं। हालांकि, ब्रिक्स को एक साझा मुद्रा की दिशा में सफलता के लिए मजबूत संस्थागत ढांचा, विश्वासनीय विनिमय व्यवस्था और राजनीतिक समन्वय की आवश्यकता है। इसलिए, ब्रिक्स डी-डॉलराइजेशन की स्थिति तो बना रहा है, पर विकल्प बनने की प्रक्रिया में कई आर्थिक, तकनीकी और भू-राजनीतिक बाधाएं हैं। इसके बावजूद, यह पश्चिम-केंद्रित वित्तीय सत्ता संतुलन को चुनौती देने वाली ऐतिहासिक पहल मानी जा सकती है।
राजनीतिक-संस्थागत समावेशन
विस्तार और शर्तबद्ध सदस्यता: इंडोनेशिया एकमात्र दक्षिण-पूर्व एशियाई देश के रूप में शामिल हुआ, साथ ही सऊदी अरब, मिस्र, ईरान, इथोपिया, यूएई आदि नए सदस्यों का समावेश जारी है। वैश्विक दक्षिण के एकीकृत स्वर में ब्राज़ील में सम्मेलन द्वारा इस थीम को जोरदार रूप दिया गया कि ब्रिक्स एक प्रभावशाली विकल्प है जो सुरक्षित, न्याय पूर्ण एवं समावेशी वैश्विक शासन की दिशा में काम कर रहा है। मल्टीलेटरलवाद और नीति संवाद: वित्त मंत्रियों, विज्ञान मंत्रियों, थिंक टैंक परिषदों जैसे समूहों के माध्यम से नियमित सम्मेलनों और सहयोग प्रवाह को संस्थागत किया गया।
चुनौतियाँ एवं संभावित मार्ग
ब्रिक्स ने विभिन्न क्षेत्रों में महत्वाकांक्षी दृष्टिकोण अपनाया है, लेकिन वास्तविकता में इसके सामने कुछ चुनौतियाँ हैं। अंतर्गत असहमति: चीन के राष्ट्रपति की अनुपस्थिति और रूस की वर्चुअल भागीदारी, सदस्य देशों की अलग-अलग साझेदारी रणनीति (चीन-पश्चिम, भारत-पश्चिम सहयोग) समुदाय की एकता पर सवाल खड़े करते हैं। परियोजनाओं का प्रारंभिक चरण कई बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे कार्बन मार्केट, ग्रेन एक्सचेंज, जलवायु सेंटर प्रस्तावित हैं, पर अभी प्रारंभिक अवस्थाओं में हैं और विश्लेषकों का कहना है कि इनके क्रियान्वयन में समय लगेगा।
विदेशी दबाव: U.S. के नए 10% अतिरिक्त टैरिफ की धमकी जैसे संकेत ब्रिक्स को सतर्क कर रहे हैं कि वैश्विक वित्तीय और आर्थिक रूपरेखा आसान नहीं होगी।
ब्रिक्स 2025 सम्मेलन ने बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था, डिजिटल, वैज्ञानिक और एक्स पर्यावरण संबंधी नवाचार, और वैश्विक दक्षिण के न्यायपूर्ण प्रतिनिधित्व जैसे प्राथमिक लक्ष्यों में अपनी प्रतिबद्धता को दृढ़ता से दोहराया है। शोध, शिक्षा, नेटवर्क यूनिवर्सिटी, विज्ञान एवं तकनीकी इन्फ्रास्ट्रक्चर, AI. इनके साथ आर्थिक रूप से स्वायत्त ढांचों का लक्ष्य रखते हुए ब्रिक्स नवाचार, वित्तीय आत्मनिर्भरता और समावेशिता की दिशा में अग्रसर है। हालांकि आंतरिक मतभेद, विकासशील कार्यक्रमों की कार्यान्वयन चुनौतियाँ और बाहरी दबाव इनके मार्ग में बाधा बन सकते हैं, लेकिन अभी स्थिति इस रूप में विकसित हो चुकी है कि ब्रिक्स एक वैकल्पिक वैश्विक संगठन के रूप में उभरकर सामने आ रहा है। यह सम्मेलन ब्रिक्स की क्षमता, आकांक्षा और रणनीति को समग्र प्रतिनिधित्व देता है – एक समूह जो कार्रवाई और दूरदर्शिता दोनों के साथ बदलती वैश्विक व्यवस्था में अपनी भूमिका के लिए तैयार है।
The News Grit, 08/07/2025
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