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बिहार को रेलवे और डिजिटल सेक्टर में बड़ी सौगात: केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने की महत्‍वपूर्ण घोषणाएं!!

भारतीय वैज्ञानिकों ने तैयार की सुपरचार्ज्ड ग्रीन एनर्जी सामग्री!!

भारत के वैज्ञानिकों ने एक बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि हासिल की है, जो आने वाले समय में ऊर्जा प्रणाली को नई दिशा दे सकती है। ऊर्जा भंडारण तकनीक में महत्‍वपूर्ण खोज, LCD चलाने में भी सफलयह साबित हुआ है बेंगलुरु स्थित नैनो और मृदु पदार्थ विज्ञान केंद्र (CeNS) और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के वैज्ञानिकों के साझा प्रयास से। दोनों संस्थानों की टीम ने मिलकर एक उन्नत ग्रीन एनर्जी सामग्री विकसित की है, जो सुपरकैपेसिटर (Supercapacitor) की कार्यक्षमता को नाटकीय रूप से बेहतर बनाती है। यह नई सामग्री न केवल ऊर्जा को तेज़ी से चार्ज और डिस्चार्ज करती है, बल्कि अधिक समय तक संचित भी रख सकती है। खास बात यह है कि इससे निर्मित सुपरकैपेसिटर प्रोटोटाइप ने सफलतापूर्वक एक LCD डिस्प्ले को भी संचालित किया है, जिससे इसके व्यावहारिक उपयोग की पुष्टि होती है। यह खोज भारत की ऊर्जा क्षमता को मजबूत करने की दिशा में एक उल्लेखनीय उपलब्धि मानी जा रही है।

क्या है सुपरकैपेसिटर?

सुपरकैपेसिटर एक उन्नत ऊर्जा भंडारण उपकरण है जो पारंपरिक बैटरियों की तुलना में बहुत तेज़ी से चार्ज और डिस्चार्ज हो सकता है।

इसका उपयोग:

·         मोबाइल उपकरणों,

·         इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs),

·         और अक्षय ऊर्जा प्रणालियों में तेजी से बढ़ रहा है।

हालांकि सुपरकैपेसिटर तेज़ होते हैं, लेकिन वे बैटरियों के मुकाबले कम ऊर्जा स्टोर करते हैं। इस कमी को दूर करने के लिए वैज्ञानिक ऐसी नई सामग्रियों की खोज कर रहे हैं जो भंडारण क्षमता बढ़ा सकें, वो भी बिना गति या टिकाऊपन की हानि के।

किस सामग्री पर किया गया शोध?

यह शोध भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के अंतर्गत नैनो और मृदु पदार्थ विज्ञान केंद्र (CeNS), बेंगलुरु के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया। टीम का नेतृत्व डॉ. कविता पांडे ने किया। उन्होंने ध्यान केंद्रित किया एक विशेष पर्यावरण-अनुकूल पदार्थ पर जिसका नाम है सिल्वर नियोबेट (Silver Niobate – AgNbO)
यह पदार्थ:

·         सीसा-मुक्त (Lead-free) है

·         और इसमें उत्कृष्ट विद्युत विशेषताएं हैं।

नया प्रयोग: लैंथेनम डोपिंग

वैज्ञानिकों ने सिल्वर नियोबेट में लैंथेनम (Lanthanum) नामक एक दुर्लभ-पृथ्वी तत्व (rare-earth element) मिलाया, जिसे तकनीकी रूप से "डोपिंग (Doping)" कहते हैं।

इसका परिणाम:

·         नैनोकणों (Nanoparticles) का आकार छोटा हो गया जिससे सतह क्षेत्र बढ़ गया, यानी ऊर्जा को स्टोर करने की क्षमता बढ़ी।

·         लैंथेनम ने सामग्री की बिजली प्रवाह की क्षमता (conductivity) को बेहतर बनाया जिससे चार्ज और डिस्चार्ज प्रक्रिया और तेज़ हो गई।

क्या बदला इस नई सामग्री से?

·         इस डोपिंग के बाद ऊर्जा प्रतिधारण क्षमता में ज़बरदस्त सुधार देखा गया।

·         उपयोग के बाद भी सामग्री ने अपनी प्रारंभिक ऊर्जा क्षमता का 118% तक बरकरार रखा।

·         ऊर्जा बर्बाद लगभग नहीं हुई, और 100% कूलम्बिक दक्षता (Coulombic Efficiency) प्राप्त हुई।

 (कूलम्बिक दक्षता का अर्थ है – जितनी ऊर्जा चार्ज में डाली गई, उतनी ही ऊर्जा डिस्चार्ज में वापस मिली।)

असल दुनिया में परीक्षण: LCD डिस्प्ले को चलाया

इस सामग्री से बना एक असमान सुपरकैपेसिटर प्रोटोटाइप सफलतापूर्वक एक LCD डिस्प्ले को चलाने में उपयोग किया गया, जिससे यह साबित हुआ कि यह तकनीक लैब से बाहर असल दुनिया में भी काम कर सकती है।

शोध कहां प्रकाशित हुआ?

यह पूरा शोध Journal of Alloys and Compounds में प्रकाशित हुआ है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका है। इसमें यह दिखाया गया कि कैसे लैंथेनम डोपिंग द्वारा सिल्वर नियोबेट नैनोकणों के गुणों को बदला जा सकता है ताकि उच्च प्रदर्शन वाले सुपरकैपेसिटर बनाए जा सकें।

वैश्विक संदर्भ और भविष्य की दिशा

आज दुनिया भर में स्वच्छ और कुशल ऊर्जा भंडारण की दिशा में काम हो रहा है। इस खोज को इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जा सकता है।

ला-डोप्ड सिल्वर नियोबेट (La-doped AgNbO) की यह तकनीक:

·         पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों (जैसे स्मार्टफोन, लैपटॉप)

·         और बड़े पैमाने पर अक्षय ऊर्जा प्रणालियों (जैसे सोलर फार्म, विंड टरबाइन) में इस्तेमाल होने वाले कॉम्पैक्ट और उच्च दक्षता वाले ऊर्जा स्टोरेज डिवाइस बनाने का मार्ग खोलती है।

आगे, वैज्ञानिक:

·         अन्य पेरोव्स्काइट्स (Perovskites) – यानी विशेष क्रिस्टल संरचना वाली उन्नत सामग्रियों – पर भी इसी प्रकार की डोपिंग आज़माएँगे।

·         साथ ही इस तकनीक को उद्योग स्तर पर बड़े पैमाने पर तैयार करने की दिशा में काम करेंगे ताकि यह वाणिज्यिक रूप से भी व्यवहार्य बन सके।

यह खोज इस बात का प्रमाण है कि भारतीय वैज्ञानिक न केवल ऊर्जा के क्षेत्र में स्वदेशी नवाचार कर रहे हैं, बल्कि वह तकनीकें भी विकसित कर रहे हैं जो पर्यावरण के अनुकूल, प्रभावी, और भविष्य के लिए उपयोगी हैं।

The News Grit, 04/07/2025

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