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बिहार को रेलवे और डिजिटल सेक्टर में बड़ी सौगात: केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने की महत्‍वपूर्ण घोषणाएं!!

क्वाड की समुद्री रणनीति को नया बल – चार देशों के तटरक्षक बल एक ही जहाज पर!!

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता , शांति और सहयोग को मज़बूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए , क्वाड देशों – भारत , जापान , अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया – ने पहली बार संयुक्त रूप से समुद्र में एक विशेष मिशन की शुरुआत की है , जिसका नाम है ‘ क्वाड एट सी शिप ऑब्जर्वर मिशन’। यह पहल चारों देशों के तटरक्षक बलों   (Coast Guards)   के बीच साझा अभ्यास ,   अनुभवों का आदान-प्रदान और परिचालन तालमेल को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई है। इस मिशन को   " विलमिंगटन घोषणा" के तहत लागू किया गया है ,   जिसकी घोषणा सितंबर   2024   में क्वाड नेताओं के शिखर सम्मेलन के दौरान की गई थी। मिशन की खास बातें इस अभियान में भारत , जापान , अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के दो-दो अधिकारी , जिनमें महिला अधिकारी भी शामिल हैं , अमेरिका के कोस्ट गार्ड जहाज 'USCGC STRATTON' पर सवार हुए हैं। यह जहाज इस समय गुआम की यात्रा पर है और मिशन के तहत क्रॉस-एम्बार्केशन अभ्यास (Cross-Embarkation Mission) किया जा रहा है , जिसमें सभी देश एक-दूसरे के संचालन , तकनीक और प्रशिक्षण पद्धतियों को समझते हैं। क्य...

हूल दिवस पर विशेष : आजादी की पहली हुंकार - संथाल क्रांति की अमर गाथा!!

30 जून , 1855 – भोगनाडीह , झारखंड के जनजातीय इतिहास में 30 जून एक ऐसा दिन है जिसे सिर्फ तारीख नहीं , एक ज्वाला की तरह याद किया जाता है। यही वह दिन था जब संथाल समाज ने अन्याय , शोषण और दमन के खिलाफ एक सामूहिक विद्रोह की चिंगारी सुलगाई , जो आज हूल दिवस के रूप में हमारे आत्मसम्मान और संघर्ष की स्मृति बन चुका है। भोगनाडीह से उठी स्वतंत्रता की पहली चिंगारी 1855 में आज ही के दिन झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र के भोगनाडीह गाँव से एक ऐतिहासिक आंदोलन की शुरुआत हुई। यह कोई मामूली विरोध नहीं था , बल्कि यह वह प्रचंड प्रतिकार था जिसमें सिद्धो , कान्हू , चांद और भैरव – एक ही मां की चार संतानें – अपने हजारों साथियों के साथ ब्रिटिश सत्ता , महाजनी शोषण और जमींदारी उत्पीड़न के विरुद्ध खड़े हुए। इस विद्रोह को "हूल" कहा गया , जिसका संथाली भाषा में अर्थ है – बग़ावत या विद्रोह। यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐसा अध्याय है जो 1857 की क्रांति से भी दो साल पहले लिखा गया था। दमन , धोखा और दासता का विस्तार 1765 में जब मुग़ल सम्राट शाह आलम ने बंगाल , बिहार और ओडिशा की दीवानी अंग्रेजों को सौं...

तुवालु के नागरिकों के लिए स्थायी ऑस्ट्रेलियाई निवास की राह खुली: जलवायु वीजा की ऐतिहासिक पहल!!

जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापन का सामना कर रहे छोटे द्वीपीय देशों के लिए एक ऐतिहासिक पहल की शुरुआत हो चुकी है। ऑस्ट्रेलिया सरकार ने "पैसिफिक एंगेजमेंट वीज़ा" नामक एक विशेष जलवायु वीज़ा कार्यक्रम की घोषणा की है , जिसका पहला चरण 16 जून से शुरू हो चुका है। यह वीज़ा कार्यक्रम तुवालु जैसे जलवायु-संवेदनशील देशों के नागरिकों को स्थायी निवास की सुविधा देगा। ऑस्ट्रेलिया और तुवालु के बीच "फालेपिली यूनियन" नामक द्विपक्षीय समझौते के तहत शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य है जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते समुद्र स्तर से प्रभावित तुवालुवासियों को सुरक्षित और गरिमामय जीवन प्रदान करना। यह विश्व का पहला ऐसा समझौता है जिसमें किसी देश ने कानूनी रूप से यह    किया है कि यदि जलवायु परिवर्तन के कारण तुवालु की भूमि समुद्र में समा जाती है ,   तब भी उसकी संप्रभुता और राष्ट्र के रूप में अस्तित्व बना रहेगा। क्या है यह वीज़ा योजना ? इस वीज़ा कार्यक्रम के अंतर्गत हर साल 280 तुवालु नागरिकों को यादृच्छिक लॉटरी ( random ballot) के ज़रिए चयनित किया जाएगा। इस चयन प्रक्रिया के लिए आवेदन शुल्क 25 ऑस्ट...

Gwada Negative: दुनिया का 48वां ब्लड ग्रुप — अभी सिर्फ एक व्यक्ति में मिला!!

फ्रांसीसी ब्लड संस्थान ( É tablissement fran ç ais du sang, EFS) ने हाल ही में एक नए और बेहद दुर्लभ रक्त प्रकार की खोज की है , जिसे उन्होंने “ Gwada Negative” नाम दिया है। यह अब तक विश्व में दर्ज 48 वां ब्लड ग्रुप माना गया है। इस रक्त प्रकार के संबंध में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस समय सिर्फ एक ही व्यक्ति में इसकी पुष्टि हुई है। खोज का सफर: कैसे मिली यह पहचान ? 2001 में ग्वाडेलूप निवासी एक महिला का रक्त परीक्षण पेरिस में हुआ था , जब वे सर्जरी के लिए तैयारी कर रही थीं। उस समय उनका ब्लड ग्रुप पहचान में नहीं आया। 2011 में उनके ब्लड टेस्ट में एक "बहुत असामान्य" एंटीबॉडी मिली , लेकिन उस समय आगे की जांच के साधन उपलब्ध नहीं थे। 2019 में जीन्स सीक्वेंसिंग के माध्यम से पाया गया कि रक्त कोशिकाओं की सतह पर एक विशेष जीन ( PIGZ) में उत्परिवर्तन था , जिसने इस नए रक्त प्रकार को जन्म दिया। इस अनुवांशिक जीन दोष को महिला के माता-पिता से विरासत में मिला माना जा रहा है। इस खोज को International Society of Blood Transfusion (ISBT) ने जून 2025 में आधिकारिक रूप से मान्यता दी। विशेष क...

सागौन के पत्तों से बनी लेजर सुरक्षा: एक जैविक और पर्यावरण अनुकूल खोज!!

लेजर की बढ़ती ताकत और खतरे - आज के वैज्ञानिक और तकनीकी युग में लेजर तकनीक का उपयोग तेजी से बढ़ता जा रहा है। चिकित्सा (जैसे आंखों की सर्जरी) , सैन्य (जैसे रडार या हथियार) , और उद्योग (जैसे काटने या मापने की मशीनों) में तेज लेजर बीम का उपयोग आम हो गया है। लेकिन यह तकनीक जहां सुविधाएं देती है , वहीं नाजुक ऑप्टिकल उपकरणों और मानव आंखों के लिए खतरनाक भी हो सकती है। तेज लेजर की किरणें आंखों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं। इसलिए अब ज़रूरत है ऐसी लेजर सुरक्षा तकनीकों की जो प्राकृतिक , सस्ती , और पर्यावरण के अनुकूल हों। सागौन के पत्तों से बनी जैविक लेजर सुरक्षा भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ( DST) के अंतर्गत आने वाले रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट ( RRI) के वैज्ञानिकों ने एक अद्भुत प्राकृतिक विकल्प खोजा है - सागौन के पेड़ ( Teak – Tectona grandis ) की फेंकी जाने वाली पत्तियाँ। वैज्ञानिकों ने पाया कि ये पत्तियाँ एक विशेष प्राकृतिक रंगद्रव्य एंथोसायनिन ( Anthocyanin) से भरपूर होती हैं , जो इन्हें लाल-भूरा रंग देता है और यही रंग लेजर सुरक्षा में सहायक बन सकता है। इस खोज के बारे में RRI ...

2026 में भारत करेगा पहली बार घरेलू आय सर्वेक्षण, जानिए कैसे बदलेगी नीतियाँ!!

भारत सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए देश का पहला " अखिल भारतीय घरेलू आय सर्वेक्षण" 2026 में आयोजित करने की योजना बनाई है। यह सर्वेक्षण भारत के नागरिकों की कमाई , खर्च और आय वितरण से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी जुटाने का प्रयास होगा , जो अब तक राष्ट्रीय स्तर पर कभी नहीं किया गया। इस पहल को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ( NSO) द्वारा क्रियान्वित किया जाएगा और इसे सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) की निगरानी में संचालित किया जाएगा। अब तक क्यों नहीं हुआ था ऐसा सर्वेक्षण ? भारत में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण ( NSS) की शुरुआत 1950 में हुई थी और तब से यह शिक्षा , स्वास्थ्य , श्रम , कृषि , पर्यटन आदि जैसे कई क्षेत्रों में विस्तृत सर्वेक्षण करता आ रहा है। हालांकि , घरेलू आय ( यानि एक परिवार कुल कितनी कमाई करता है और कहाँ से करता है) के आंकड़े जुटाने के प्रयास जरूर हुए — जैसे 1955, 1965, 1983 में पायलट स्टडीज़ — लेकिन ये कभी भी अखिल भारतीय स्तर पर नहीं पहुँच सके। इन कारणों में तकनीकी कठिनाइयाँ , विश्वसनीय डेटा संग्रह की चुनौतियाँ और सही मॉडल की कमी प्रमुख रहे। क...