अब हर भारतीय को मिल सकेगा आनुवंशिक आधार पर व्यक्तिगत इलाज, केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और सीएसआईआर (Council of Scientific and Industrial Research) के उपाध्यक्ष डॉ. जितेंद्र सिंह ने राजधानी स्थित सीएसआईआर-आईजीआईबी (Institute of Genomics and Integrative Biology) में भारत के पहले अत्याधुनिक "राष्ट्रीय बायोबैंक" का उद्घाटन किया। इसके साथ ही भारत के स्वदेशी जनसंख्या डेटा अध्ययन (longitudinal population study) की भी शुरुआत की गई।
बायोबैंक क्या है?
बायोबैंक एक
ऐसा वैज्ञानिक संग्रहण केंद्र होता है, जहाँ
आम लोगों से लिए गए रक्त, डीएनए, ऊतक
और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी को एकत्र कर सुरक्षित रखा जाता है। यह डेटा रोगों की
पहचान, इलाज और नई दवाओं के विकास में अहम भूमिका निभाता है।
फेनोम
इंडिया – भारत का स्वास्थ्य डेटा मिशन
यह बायोबैंक
"फेनोम इंडिया" परियोजना के तहत शुरू किया गया है। इसका
उद्देश्य है पूरे भारत से 10,000 से अधिक लोगों का जीनोमिक,
जीवनशैली और स्वास्थ्य डेटा एकत्र करना। यह मॉडल यूके बायोबैंक से
प्रेरित है, लेकिन भारत की भूगोल, जातीयता
और सामाजिक विविधताओं के अनुसार तैयार किया गया है।
डॉ.
जितेंद्र सिंह ने बताया,
“आज,
हम एक ऐसे भविष्य का वादा करते हैं, जहां हर
भारतीय को उसकी आनुवंशिक संरचना, जीवनशैली और पर्यावरण के
अनुरूप व्यक्तिगत उपचार मिल सकता है। व्यक्तिगत स्वास्थ्य सेवा में यह बदलाव अब
सैद्धांतिक नहीं रह गया है - यह स्वदेशी नवाचारों द्वारा संचालित वास्तविकता बन
रहा है।”
बीमारियों
से लड़ने में मदद करेगा बायोबैंक
बायोबैंक से
मिलने वाला उच्च गुणवत्ता वाला डेटा वैज्ञानिकों के लिए कई प्रमुख क्षेत्रों में
अत्यंत उपयोगी साबित होगा। यह डेटा डायबिटीज़, हृदय
रोग और कैंसर जैसी जटिल बीमारियों की शुरुआती पहचान में सहायता करेगा, जिससे समय रहते उपचार संभव हो सकेगा। साथ ही, यह
जानकारी जीन आधारित इलाज और दवाओं के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
बायोबैंक के माध्यम से वैज्ञानिकों को सिकल सेल एनीमिया और दुर्लभ आनुवंशिक
विकारों पर गहराई से अनुसंधान करने का अवसर मिलेगा। इसके अतिरिक्त, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित निदान और उपचार
प्रणालियों के विस्तार में भी यह डेटा एक मजबूत आधार बनेगा, जिससे
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और प्रभावशीलता दोनों बढ़ेंगी।
भारतीय स्वास्थ्य चुनौतियाँ और जनसंख्या आधारित समाधान
भारतीयों की
अनूठी स्वास्थ्य चुनौतियों की चर्चा करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने "केंद्रीय
मोटापे" (Central Obesity) की समस्या को
विशेष रूप से रेखांकित किया, जिसे आमतौर पर गंभीरता से नहीं
लिया जाता। उन्होंने बताया कि कई बार दुबले-पतले दिखने वाले भारतीयों की कमर के
आसपास अतिरिक्त चर्बी जमा होती है, जो गंभीर बीमारियों का
संकेतक हो सकती है। यह स्थिति दर्शाती है कि भारत में स्वास्थ्य समस्याएँ केवल
दिखावे पर आधारित नहीं हैं, बल्कि गहराई से विश्लेषण करने
योग्य हैं। इस संदर्भ में उन्होंने जनसंख्या-विशिष्ट स्वास्थ्य रणनीतियों की
आवश्यकता को ज़रूरी बताया। डॉ. सिंह ने स्पष्ट किया कि भारत की परिस्थितियाँ जटिल
और अत्यधिक विविध हैं, और इन्हें समझने के लिए एक समर्पित
वैज्ञानिक ढांचा चाहिए। इसी कारण, उन्होंने राष्ट्रीय
बायोबैंक को एक महत्वपूर्ण उपकरण बताया, जो इस जटिलता को
समझने और उसका समाधान खोजने में सहायक सिद्ध होगा।
वैज्ञानिकों
और उद्योगों में सहयोग की अपील
मंत्री ने
कहा कि भारत अब अनुसरण करने वाला नहीं, बल्कि
विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी बनने की दिशा में है। उन्होंने अनुसंधान संस्थानों,
सरकारी विभागों और निजी उद्योगों से मिलकर एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध
(AMR) और नई दवाओं के विकास जैसे क्षेत्रों में गहरा सहयोग
करने का आग्रह किया। “शोध सिर्फ प्रयोगशालाओं में सीमित नहीं
होना चाहिए, इसका लाभ बाजार और समाज तक पहुँचना चाहिए।”
सीएसआईआर-आईजीआईबी
की प्रमुख उपलब्धियाँ
सीएसआईआर-आईजीआईबी
के निदेशक डॉ. सौविक मैती ने इस अवसर पर संस्थान की दो दशकों की उपलब्धियों पर
प्रकाश डालते हुए जीनोमिक्स के क्षेत्र में उसकी अग्रणी भूमिका को रेखांकित किया।
उन्होंने कहा कि IGIB भारत का पहला ऐसा
संस्थान है, जिसने उस समय मानव जीनोम को डिकोड करना शुरू
किया, जब देश में अनुक्रमण उपकरण लगभग उपलब्ध ही नहीं थे।
डॉ. मैती ने बताया कि संस्थान ने अब तक 300 से अधिक दुर्लभ
विकारों के लिए आनुवंशिक निदान विकसित किए हैं और कोविड-19 के
जीनोम अनुक्रमण में भी व्यापक योगदान दिया है। साथ ही, भारत
की पहली दवा-जीनोमिक परियोजना की शुरुआत भी इसी संस्थान से हुई। उन्होंने इस बात
पर ज़ोर दिया कि IGIB का मिशन है – स्थानीय स्वास्थ्य
चुनौतियों को समझते हुए, उन्हें हल करने के लिए वैश्विक
तकनीकों का वैज्ञानिक और व्यावहारिक उपयोग करना। संस्थान में स्तन कैंसर जीनोमिक्स,
महिला स्वास्थ्य पर केंद्रित अध्ययन और सिकल सेल रोग के लिए स्वदेशी
सीआरआईएसपीआर उपचार पर भी विशेष कार्य जारी है। इन प्रयासों का उद्देश्य समाज के
विविध वर्गों को स्वास्थ्य लाभ पहुँचाना है।
आत्मनिर्भर
भारत के लिए वैज्ञानिक आधार
सीएसआईआर की
महानिदेशक डॉ. एन. कलईसेलवी ने इसे भारत की "स्वास्थ्य डेटा में आत्मनिर्भरता" की दिशा में एक मजबूत पहल बताया।
उन्होंने कहा कि भारत का यह बायोबैंक एक दिन यूके बायोबैंक जैसे वैश्विक मानकों से
मुकाबला कर सकता है, बल्कि आगे भी निकल सकता है।
राष्ट्रीय
बायोबैंक का शुभारंभ भारत के लिए एक ऐतिहासिक वैज्ञानिक उपलब्धि है। यह पहल न केवल
वैयक्तिक इलाज के रास्ते खोलेगी, बल्कि देश को वैश्विक
स्वास्थ्य नेतृत्व की दिशा में भी ले जाएगी। यह विज्ञान, नीति
और समाज के बीच मजबूत पुल का काम करेगा — एक ऐसा कदम जो आने वाली पीढ़ियों को
स्वास्थ्य के क्षेत्र में आत्मनिर्भर और सुरक्षित बनाएगा।
The News Grit, 07/07/2025
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