ग्रेटर नोएडा,
दिल्ली-एनसीआर: भारत की पारंपरिक कला और हस्तशिल्प की अनूठी झलक को
देखने के लिए इंडिया एक्सपो सेंटर एंड मार्ट, ग्रेटर नोएडा
में आयोजित 60वें इंडियन हैंडीक्राफ्ट्स एंड गिफ्ट्स दिल्ली
फेयर 2025 में देश-विदेश के हजारों खरीदार, डिजाइनर और व्यवसायी पहुंचे। इस अंतरराष्ट्रीय मेले में मध्यप्रदेश का बाग
प्रिंट विशेष आकर्षण का केंद्र बना।
यह फेयर
एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल फॉर हैंडीक्राफ्ट्स द्वारा आयोजित किया गया था और इसे
दुनिया के सबसे बड़े B2B (बिजनेस-टू-बिजनेस)
ट्रेड फेयर्स में गिना जाता है। पांच दिवसीय इस मेले में लगभग 3,000 भारतीय निर्माता और निर्यातक शामिल हुए, जबकि 110 से अधिक देशों के खरीदारों ने भाग लिया, जिनमें
अमेरिका, फ्रांस, स्पेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और
यूके के प्रमुख आयातक भी शामिल थे।
बाग
प्रिंट: कला, इतिहास और पर्यावरण
का संगम
बाग प्रिंट
मध्यप्रदेश के धार जिले के बाग गांव से उत्पन्न एक पारंपरिक हस्तकला है। यह कला
हाथ से लकड़ी के ब्लॉक पर उभरे डिजाइन को कपड़े पर छापने की प्रक्रिया पर आधारित
है और इसमें प्राकृतिक रंगों और रसायनों का उपयोग किया जाता है। इस प्रिंट में
ज्यादातर भौगोलिक, पेस्ली और पुष्प
डिजाइन दिखाई देते हैं। लाल और काले रंग को सफेद पृष्ठभूमि पर प्रमुखता से प्रयोग
किया जाता है।
इस हस्तकला
की उत्पत्ति लगभग 1,000 वर्ष पूर्व मानी
जाती है। माना जाता है कि यह तकनीक पीढ़ी दर पीढ़ी परिवारों के बीच हस्तांतरित
होती रही है। वर्तमान में इस कला का अभ्यास मुस्लिम खत्री समुदाय के छिपा कर रहे
हैं, जो लगभग 400 वर्ष पहले लरकाना (सिंध, पाकिस्तान) से आए थे। बाघ नदी के पानी में फैब्रिक धोने और प्राकृतिक रंग
तैयार करने की विशेषताएँ इस कला को अन्य प्रिंटिंग शैलियों से अलग बनाती हैं।
1960
के दशक में कई कारीगरों ने सिंथेटिक फैब्रिक अपनाया, लेकिन
कुछ कारीगर जैसे इस्माइल सुलैमानजी खत्री ने पारंपरिक तकनीक को जारी रखा और बाग
प्रिंट को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। 2011 में गणतंत्र दिवस
परेड में मध्यप्रदेश की झांकी में बाग प्रिंट का उपयोग किया गया था।
बाग
प्रिंट की प्रक्रिया
बाग प्रिंट
की छपाई तीन चरणों में होती है: प्री-प्रिंटिंग, प्रिंटिंग और पोस्ट-प्रिंटिंग।
प्री-प्रिंटिंग:
·
कपड़े को पानी में
धोकर और पत्थरों पर पीटकर स्टार्च हटाया जाता है।
·
इसके बाद कपड़े को
रॉक साल्ट, मेंगनी और अरंडी के तेल के घोल
में भिगोकर सुखाया जाता है।
·
फिर कपड़े को हल्का
ऑफ-व्हाइट रंग देने के लिए रंगा जाता है (हरारा – Harara), जो लाल और काले रंग की गहराई बढ़ाता है।
प्रिंटिंग:
·
लकड़ी के ब्लॉक से
हाथ से डिजाइन लगाया जाता है।
·
रंग: लाल और काला
मुख्य,
साथ ही इंडिगो, सरसों और खाकी।
·
ब्लॉक डिजाइन:
ज्यामितीय, पुष्प या बाग गुफा चित्रों से
प्रेरित।
·
डाई: पौधों,
फूलों, फलों और खनिजों से तैयार।
·
कपड़े को रेड
सैंडस्टोन टेबल पर रखा जाता है और ब्लॉक हाथ से लगाया जाता है।
पोस्ट-प्रिंटिंग:
·
कपड़े को धोकर
अतिरिक्त रंग हटाया जाता है।
·
भट्टी प्रक्रिया:
कपड़े को पानी, एलिजरिन और धावड़ा फूल के
मिश्रण में उबालकर रंग को स्थिर किया जाता है।
·
अंतिम प्रक्रिया में
कपड़े को तीन बार धोकर तैयार किया जाता है।
मेले
में बाघ प्रिंट का प्रदर्शन
मध्यप्रदेश
के आरिफ खत्री ने अपने स्टॉल पर बाग प्रिंट की पारंपरिक बारीकियों और प्राकृतिक
रंगों की तकनीक को प्रदर्शित किया। देशी और विदेशी प्रतिनिधि उनके पास रुककर बाग
प्रिंट के इतिहास, प्रक्रिया और
पर्यावरण-अनुकूल स्वरूप के बारे में जानकारी लेते नजर आए। विदेशी खरीदारों ने बाग
उत्पादों में गहरी रुचि दिखाई और वैश्विक बाजार में इसे आगे बढ़ाने के लिए सहयोग
की इच्छा जताई।
बाग
प्रिंट का महत्व
बाग प्रिंट
को भारत सरकार द्वारा GI टैग प्राप्त है और
यह मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है। यह कला न केवल पर्यावरण-अनुकूल है,
बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ अभियान की मिसाल भी है। सभी रंग प्राकृतिक
स्रोतों से तैयार किए जाते हैं और यह हस्तकला वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ODOP)
योजना के तहत धार जिले का प्रतिनिधि उत्पाद भी है। बाग प्रिंट का
वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त होना और अंतरराष्ट्रीय मेले में इसका प्रदर्शन
इसे भारत के हस्तशिल्प और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक बनाता है।
60वें
इंडियन हैंडीक्राफ्ट्स एंड गिफ्ट्स दिल्ली फेयर 2025 में बाग
प्रिंट ने साबित कर दिया कि मध्यप्रदेश की पारंपरिक कला न केवल सुंदर है,
बल्कि आधुनिक वैश्विक बाजार में अपनी जगह भी बना सकती है। यह
हस्तकला न केवल भारतीय संस्कृति की पहचान है, बल्कि पर्यावरण
के प्रति सजग और टिकाऊ उत्पाद के रूप में भी विश्व में अपनी अलग छवि बना रही है।
The News Grit, 25/10/2025

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