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ब्रह्मांड की शुरुआती आवाजे सुनने में एक छोटे कंप्यूटर की बड़ी भूमिका!!

ब्रह्मांड की शुरुआती आवाजे सुनने में एक छोटे कंप्यूटर की बड़ी भूमिका!!

चाँद की कक्षा से "कॉस्मिक डॉन" का राज खोलेगा भारतीय पेलोड "प्रतुश"

ब्रह्मांड का इतिहास बेहद रहस्यमय और जटिल है। आज हम जो आकाशगंगाएँ, तारे और ग्रह देखते हैं, उनकी कहानी अरबों साल पहले शुरू हुई थी। वैज्ञानिक लंबे समय से यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि ब्रह्मांड में पहले तारे कब और कैसे बने। इसी दौर को "कॉस्मिक डॉन" कहा जाता है। इस रहस्य से पर्दा उठाने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने एक महत्वाकांक्षी प्रयोग की योजना बनाई है, जिसमें क्रेडिट कार्ड के आकार का एक छोटा कंप्यूटर अहम भूमिका निभाएगा।

कॉस्मिक डॉन: ब्रह्मांड का सुनहरा आरंभ

कॉस्मिक डॉन वह काल है जब ब्रह्मांड में पहली बार तारों और आकाशगंगाओं का निर्माण हुआ। यह समय बेहद खास था क्योंकि यहीं से ब्रह्मांड की संरचना बदलनी शुरू हुई। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर हम इस युग को सही से समझ लें, तो हमें यह भी पता चल सकता है कि आज का ब्रह्मांड वैसा क्यों दिखता है जैसा हम देखते हैं।

लेकिन समस्या यह है कि उस समय से आने वाले सिग्नल बेहद कमजोर हैं। हाइड्रोजन परमाणु से निकलने वाला 21-सेमी का रेडियो सिग्नल कॉस्मिक डॉन की झलक देता है, लेकिन यह इतना हल्का है कि हमारे पृथ्वी पर मौजूद रेडियो और एफएम प्रसारण के शोर में दब जाता है। इसे पकड़ना ऐसा है जैसे किसी शोरगुल वाले स्टेडियम में किसी की धीमी फुसफुसाहट सुनने की कोशिश करना।

"प्रतुश": भारत का महत्वाकांक्षी पेलोड

भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के समर्थन से बेंगलुरु स्थित रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (RRI) की टीम ने एक अनूठा अंतरिक्ष पेलोड तैयार किया है। इसे नाम दिया गया है – प्रतुश (PRATUSH), जिसका पूरा नाम है Probing Reionization of the Universe Using Signal from Hydrogen

प्रतुश को चाँद की कक्षा में भेजने की योजना है। इसका कारण यह है कि चंद्रमा का दूरवर्ती भाग (far side) सौरमंडल का सबसे शांत रेडियो क्षेत्र माना जाता है। यहाँ न तो पृथ्वी से आने वाला रेडियो शोर होगा और न ही आयनमंडल की गड़बड़ी। इससे वैज्ञानिकों को बेहद साफ सिग्नल मिलने की उम्मीद है।

छोटे कंप्यूटर की बड़ी ताकत

इस पूरे मिशन का असली दिमाग है एक सिंगल-बोर्ड कंप्यूटर (SBC), जो दिखने में बस एक क्रेडिट कार्ड जितना बड़ा है। आमतौर पर इसे रास्पबेरी पाई कहा जाता है।

यह छोटा कंप्यूटर तीन अहम काम करता है:

·         एंटीना और रिसीवर से आने वाले सिग्नल को डिजिटल डेटा में बदलना।

·         FPGA (Field Programmable Gate Array) नाम की खास चिप के साथ मिलकर उस डेटा को प्रोसेस करना।

·         डेटा को रिकॉर्ड करना, मिशन को नियंत्रित करना और जरूरी कैलीब्रेशन करना।

यानी यह छोटा कंप्यूटर पूरे पेलोड का मास्टर कंट्रोलर है।

क्यों है यह तकनीक खास?

पारंपरिक कंप्यूटरों की तुलना में यह बहुत छोटा, हल्का और कम ऊर्जा खर्च करने वाला है। अंतरिक्ष मिशनों में वजन और ऊर्जा की खपत बेहद महत्वपूर्ण होती है। अगर पेलोड हल्का होगा और कम बिजली खाएगा तो मिशन ज्यादा आसान और सस्ता होगा।

रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट की टीम ने इसे चुनते समय ध्यान रखा कि यह न सिर्फ कंट्रोलर बने, बल्कि डेटा रिकॉर्डर के रूप में भी काम करे। इस तरह पूरे सिस्टम को कॉम्पैक्ट और कुशल बनाया गया।

प्रयोग और शुरुआती परिणाम

वैज्ञानिकों ने प्रतुश के रेडियोमीटर का प्रयोगशाला मॉडल बनाया और इसका प्रदर्शन किया। इसमें पाया गया कि यह सिस्टम बेहद कमजोर सिग्नल पकड़ने में सक्षम है।

एक संदर्भ सिग्नल पर 352 घंटे तक डेटा इकट्ठा करने के बाद रिसीवर का शोर बहुत कम (कुछ मिली-केल्विन) पाया गया। इसका मतलब है कि यह प्रणाली सच में कॉस्मिक डॉन की फुसफुसाहट जैसी आवाजें पकड़ सकती है।

वैज्ञानिकों की राय

·         RRI के अनुसंधान वैज्ञानिक गिरीश बी.एस. के अनुसार, "सिंगल-बोर्ड कंप्यूटर आकार, प्रदर्शन और दक्षता का बेहतरीन संतुलन है। यह छोटे होने के बावजूद FPGA द्वारा उत्पन्न जटिल डेटा को आसानी से मैनेज कर सकता है।"

·         रिसर्च साइंटिस्ट श्रीवानी के.एस. ने बताया कि "सिंगल-बोर्ड कंप्यूटर को प्रतुश का मास्टर कंट्रोलर और डेटा रिकॉर्डर दोनों के रूप में चुना गया है। यह पूरे मिशन का केंद्रीय हिस्सा है।"

·         खगोल भौतिकी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर सौरभ सिंह और मयूरी एस. राव का कहना है कि "भविष्य में सौरमंडल के सबसे शांत स्थान से कॉस्मिक डॉन का सिग्नल पकड़ने में यही तकनीक अहम भूमिका निभाएगी।"

संभावनाएँ और भविष्य

अगर प्रतुश सफल होता है तो यह मिशन कई सवालों के जवाब दे सकता है:

·         पहले तारे कब बने?

·         उन्होंने ब्रह्मांड की संरचना को कैसे बदला?

·         क्या हमें नई भौतिकी (new physics) के प्रमाण मिल सकते हैं?

इसके अलावा, यह मिशन भारत के अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है। खासकर इसलिए क्योंकि यह दर्शाता है कि छोटी और किफायती तकनीक भी बड़े वैज्ञानिक रहस्यों को उजागर कर सकती है।

प्रतुश” केवल एक वैज्ञानिक प्रयोग नहीं है, बल्कि यह इस सच का प्रमाण है कि छोटी-सी तकनीक भी ब्रह्मांड के विशाल रहस्यों को खोलने की ताकत रखती है। चाँद की कक्षा में स्थापित यह नन्हा-सा कंप्यूटर मानवता के लिए उस क्षण की फुसफुसाहटें सुनने का प्रयास करेगा, जब पहली बार तारे चमके थे। हो सकता है कि इसकी मदद से हमें ब्रह्मांड के जन्मकाल की सबसे स्पष्ट और अद्वितीय जानकारी मिल सके।

The News Grit, 02/09/2025

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