लद्दाख की बर्फीली ऊँचाइयों में स्थित पूगा घाटी का एक प्राकृतिक गर्म झरना अब वैज्ञानिकों के लिए जीवन की उत्पत्ति का नया सुराग बनकर उभरा है। भारत के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी खोज की है जो न केवल पृथ्वी पर जीवन के शुरुआती दिनों को समझने में मदद करेगी, बल्कि मंगल ग्रह जैसे अन्य ग्रहों पर जीवन की खोज को भी नई दिशा दे सकती है। यह शोध न केवल खगोल-जीवविज्ञान (Astrobiology) को नया आधार देता है, बल्कि यह दर्शाता है कि कैसे पृथ्वी जैसी चरम परिस्थितियों में भी जीवन के अणु बन सकते हैं, टिक सकते हैं और संरक्षित रह सकते हैं।
पूगा घाटी: जहां बर्फ के बीच गर्म पानी बहता है
लद्दाख के इस
इलाके में स्थित पूगा घाटी भू-तापीय गतिविधियों और प्राकृतिक गर्म झरनों के लिए पहले
से ही जानी जाती है। लेकिन अब यह घाटी वैज्ञानिक अनुसंधान के केंद्र में है। यहां पर
वैज्ञानिकों ने देखा कि झरनों के आसपास तेजी से कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO₃) जमा
हो रहा है, जिसे ट्रैवर्टीन (Travertine) कहा जाता है।
ट्रैवर्टीन
में मिले जीवन के संकेत
बीरबल साहनी पुराविज्ञान
संस्थान (BSIP) के वैज्ञानिकों ने इन ट्रैवर्टीन
जमाओं का गहराई से विश्लेषण किया और उनमें अमीनो एसिड डेरिवेटिव्स, फैटी एसिड, फॉर्मामाइड और सल्फर यौगिकों जैसे जैविक अणुओं
के निशान पाए। ये सभी अणु उन रासायनिक प्रक्रियाओं का हिस्सा हैं जिनसे जीवन की शुरुआत
मानी जाती है।
कौन-कौन
से वैज्ञानिक जुड़े इस अध्ययन से?
इस अध्ययन में
शामिल प्रमुख वैज्ञानिक हैं:
डॉ. अमृतपाल सिंह
चड्ढा,
डॉ. सुनील कुमार शुक्ला, डॉ. अनुपम शर्मा,
प्रो. एम.जी. ठक्कर, डॉ. कमलेश कुमार इन सभी ने
यह सिद्ध किया कि पूगा घाटी का वातावरण प्रीबायोटिक (जीवन पूर्व) रिएक्टर की तरह काम
करता है।
कैसे
की गई यह खोज?
वैज्ञानिकों ने
इस शोध में कई आधुनिक और उन्नत तकनीकों का उपयोग किया,
जिनमें रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी,
गैस
क्रोमैटोग्राफी - मास स्पेक्ट्रोमेट्री (GC-MS-MS), एक्स-रे विवर्तन (XRD) और
स्थिर
आइसोटोप भू-रसायन शामिल हैं। इन सभी तकनीकों
की मदद से वैज्ञानिकों ने यह गहराई से समझने की कोशिश की कि पूगा घाटी में पाए गए कैल्शियम
कार्बोनेट (CaCO₃)
की परतें किस प्रकार जीवन के मूलभूत जैव-अणुओं को अपने भीतर फांस सकती
हैं और उन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रख सकती हैं। विश्लेषण से यह स्पष्ट हुआ कि ट्रैवर्टीन
जैसी संरचनाएं प्राकृतिक रासायनिक प्रयोगशालाओं की तरह काम करती हैं, जो जीवन की शुरुआत से पहले की स्थितियों को संरक्षित कर सकती हैं।
जीवन
की उत्पत्ति पर नया दृष्टिकोण
अब तक वैज्ञानिक
जीवन की शुरुआत के लिए सिलिका जैसे खनिजों को ज़िम्मेदार मानते थे,
लेकिन यह खोज CaCO₃
(कैल्शियम कार्बोनेट) को जीवन के शुरुआती "टेम्पलेट" के रूप
में स्थापित करती है। डॉ. चड्ढा के अनुसार, “प्राकृतिक ट्रैवर्टीन
प्रीबायोटिक अणुओं को संरक्षित कर सकता है। इसका मतलब है कि यह जीवन की रासायनिक शुरुआत
के लिए एक संभावित प्राकृतिक मंच हो सकता है।”
मंगल
ग्रह और अंतरिक्ष मिशनों में कैसे मदद करेगा यह शोध?
इस महत्वपूर्ण
खोज का उपयोग भविष्य में ISRO के अंतरिक्ष अभियानों
में किया जा सकता है, विशेष रूप से उन मिशनों
में जो अन्य ग्रहों पर जीवन की खोज से संबंधित हैं। यह अध्ययन मंगल ग्रह पर जीवन की
खोज के लिए एक प्रभावी मॉडल
के रूप में कार्य कर सकता है। यदि मंगल पर भी पूगा घाटी जैसे ट्रैवर्टीन (कैल्शियम
कार्बोनेट के जमा) पाए जाते हैं और उनमें जैव-अणुओं के प्रमाण मिलते हैं,
तो यह वहां जीवन की संभावनाओं को मजबूत आधार प्रदान कर सकता है। इस प्रकार,
यह शोध न केवल पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति को समझने में सहायक है,
बल्कि ग्रहों पर जीवन की खोज
के वैज्ञानिक प्रयासों को भी दिशा देता है।
खगोल-जीवविज्ञान
और सिंथेटिक बायोलॉजी को मिलेगा नया आधार
यह शोध भविष्य
में खगोल-जीवविज्ञान
(Astrobiology)
और संश्लेषित जीव विज्ञान (Synthetic Biology) के क्षेत्रों को एक नई दिशा प्रदान कर सकता है। ट्रैवर्टीन जैसी संरचनाओं में
जैविक अणुओं के संरक्षण की प्रक्रिया को समझकर वैज्ञानिक यह जान सकते हैं कि जीवन के
संकेतों को चरम परिस्थितियों में कैसे पहचाना और सुरक्षित रखा जा सकता है। यह समझ अंतरिक्ष
में जीवन की खोज में सहायक होगी और साथ ही नई जीवन-पहचान
तकनीकों (Life-detection technologies)
के विकास को भी गति देगी। ऐसे में यह खोज वैज्ञानिक अनुसंधान की उन शाखाओं
के लिए आधार बन सकती है, जो जीवन की उत्पत्ति, संरचना और संभावित अस्तित्व से जुड़ी हैं - चाहे वह पृथ्वी पर हो या किसी अन्य
ग्रह पर।
पूगा घाटी की
बर्फीली जमीन और गर्म झरने मिलकर ऐसा वातावरण बनाते हैं जो शुरुआती पृथ्वी जैसे हालात
की नकल करते हैं। वैज्ञानिकों को यहां जो जैव-अणु मिले हैं,
वे साबित करते हैं कि जीवन की रचना के लिए जरूरी रसायन प्राकृतिक रूप
से भी संरक्षित रह सकते हैं। अब यह घाटी न केवल भूवैज्ञानिक या पर्यटन स्थल है,
बल्कि भविष्य के वैज्ञानिक अभियानों की आधारशिला भी बन सकती है।
The News Grit, 30/07/2025
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