कालीकट, जुलाई 2025: गंभीर संक्रमण सेप्सिस की कुछ ही मिनटों में पहचान करने वाला एक नया, सस्ता और अत्यधिक संवेदनशील नैनो-सेंसर विकसित किया गया है। यह खोज न केवल रोगियों की जान बचाने में मददगार होगी, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों और आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं में भी अत्यंत उपयोगी साबित हो सकती है।
यह नई तकनीक राष्ट्रीय
प्रौद्योगिकी संस्थान, कालीकट (NIT
Calicut) के वैज्ञानिकों की टीम ने विकसित की है,
जिसका नेतृत्व प्रोफेसर
डॉ. एन. संध्यारानी कर रही हैं। इस टीम ने एंडोटॉक्सिन नामक एक विषैले तत्व की त्वरित
पहचान के लिए आठ अलग-अलग सेंसर आर्किटेक्चर और एक पोर्टेबल डिवाइस तैयार किया है।
सेप्सिस
क्या है और इसका पता कैसे लगाया जाता है?
सेप्सिस एक जानलेवा
स्थिति होती है, जो शरीर में संक्रमण फैलने के कारण
होती है। यह हालत अंगों के फेल होने, शॉक और मृत्यु तक पहुंच
सकती है। सेप्सिस के इलाज में समय ही सबसे अहम भूमिका निभाता है। इसका पता एंडोटॉक्सिन
जैसे बायोमार्कर से लगाया जा सकता है, जो ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया
की बाहरी झिल्ली में पाया जाता है। इसकी मौजूदगी से यह संकेत मिलता है कि संक्रमण शरीर
में मौजूद है।
कैसे
काम करता है यह नया सेंसर?
वैज्ञानिकों ने
कुल आठ सेंसर विकसित किए हैं, जिनमें से सात
इलेक्ट्रोकेमिकल सेंसर और एक ऑप्टिकल
सेंसर है। इन सभी सेंसरों को विशेष रूप से अधिक संवेदनशील और चयनात्मक
बनाने के लिए नैनोमटेरियल्स का उपयोग किया गया है। इनमें सोने के
नैनोकण, कार्बन नैनोट्यूब (CNT),
रिड्यूस्ड ग्रेफीन ऑक्साइड (rGO)
और कॉपर ऑक्साइड नैनोक्लस्टर जैसे उन्नत सामग्री
शामिल हैं। इन सेंसरों की मदद से रक्त, दवाइयों,
फलों के रस और जल के
नमूनों में एंडोटॉक्सिन
की पहचान केवल कुछ ही मिनटों में सटीकता के साथ की जा सकती है,
जिससे सेप्सिस जैसे गंभीर संक्रमण का त्वरित निदान संभव होता है।
पोर्टेबल
डिवाइस और स्मार्टफोन इंटरफेस
इस शोध का एक
बड़ा नवाचार है – स्मार्टफोन से जुड़ने वाला पोर्टेबल एंडोटॉक्सिन डिटेक्शन डिवाइस।
यह डिवाइस एंडोटॉक्सिन की उपस्थिति का पता लगाकर मात्र 10
मिनट के अंदर परिणाम दे देता है। इसमें एक खास इलेक्ट्रोकेमिकल सेंसर
चिप होती है जो फंक्शनलाइज्ड CNT और Cu2O (कॉपर ऑक्साइड नैनोकणों) से बनी होती है। यह सेंसर एलपीएस-बाइंडिंग एप्टामर
या पॉलीमिक्सिन बी की मदद से एंडोटॉक्सिन को पहचानता है।
परिणाम
कितने सटीक हैं?
सभी विकसित सेंसरों
ने एंडोटॉक्सिन की पहचान में अत्यधिक चयनात्मकता प्रदर्शित की
है। ये सेंसर ऐसे वातावरण में भी सटीक रूप से काम करते हैं,
जहां अन्य जैविक या रासायनिक यौगिक मौजूद हों। परीक्षणों में यह पाया
गया कि ये सेंसर रक्त, दवाओं और फलों
के रस जैसे वास्तविक नमूनों में एंडोटॉक्सिन
की 98% तक सटीकता के साथ पहचान कर सकते हैं, और इनकी त्रुटि
सीमा मात्र 2% के भीतर रही। यह इन सेंसरों
की विश्वसनीयता और व्यावहारिक उपयोगिता को दर्शाता है।
पानी
में भी बैक्टीरिया की पहचान
इनमें से दो सेंसर
ई. कोलाई जैसे ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया को जल के नमूनों में भी पहचान सकते हैं।
इससे साफ है कि यह डिवाइस जल गुणवत्ता की निगरानी में भी उपयोगी हो सकता
है।
अंतरराष्ट्रीय
मान्यता और पेटेंट
यह शोध अब तक
7
प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुका है,
जैसे:
·
बायोसेंसर्स एंड बायोइलेक्ट्रॉनिक्स,
·
लैंगमुइर
(दो कवर पेज),
·
एनालिस्ट,
·
एनालिटिका चिमिका एक्टा।
इसके अलावा,
इस तकनीक को लेकर एक पेटेंट भी प्राप्त हो चुका है।
यह खोज भारत की
स्वदेशी वैज्ञानिक क्षमता, नैनो-प्रौद्योगिकी और
स्वास्थ्य सेवा नवाचार की दिशा में एक बड़ा कदम है। यदि यह डिवाइस बड़े स्तर पर अपनाया
जाता है, तो इससे सेप्सिस जैसी जानलेवा स्थिति का तुरंत इलाज
संभव हो सकेगा और अनेक जीवन बचाए जा सकेंगे।
The News Grit,25/07/2025
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