जीव रसायनज्ञों ने खोजी प्रोटीन में ‘छद्म बुद्धिमत्ता’, चिकित्सा और एआई अनुसंधान में खुलें नए रास्ते!!
पारंपरिक रूप से बुद्धिमत्ता को केवल जटिल तंत्रिका तंत्र वाले उच्च जीवों की विशेषता माना जाता रहा है, लेकिन अब भारतीय वैज्ञानिकों ने प्रोटीन जैसे बुनियादी जैविक अणुओं में भी ‘छद्म बुद्धिमत्ता’ के संकेत खोज निकाले हैं। यह खोज न केवल जीव विज्ञान बल्कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और औषधि अनुसंधान के क्षेत्र में भी नए आयाम खोल सकती है।
यह
शोध विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के स्वायत्त संस्थान बोस इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर शुभ्रा घोष
दस्तीदार और उनकी छात्रा निबेदिता राय चौधरी के नेतृत्व में किया गया। टीम ने
टीएके1 काइनेज नामक प्रोटीन का अध्ययन किया, जो कोशिकीय तनाव संकेत, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया, सूजन और कोशिकाओं के अस्तित्व में अहम भूमिका निभाता है। अध्ययन का
परिणाम अंतरराष्ट्रीय पत्रिका Journal of Chemical
Information and Modeling में
प्रकाशित हुआ है और यह 2023-2025 के दौरान टीएके1 पर प्रकाशित शोध-श्रृंखला (ट्रिलॉजी) का हिस्सा है।
प्रोटीन
की ‘आंतरिक वायरिंग’ और बुद्धिमत्ता का संकेत
प्रोटीन लाखों
परमाणुओं से बने होते हैं, जो अमीनो एसिड की बहुलक
श्रृंखलाओं में संगठित होते हैं। ये तभी कार्यात्मक होते हैं जब वे एक विशेष त्रि-आयामी
संरचना में मुड़ जाते हैं, जिसे मूल अवस्था (Native
State) कहा जाता है। यह संरचना परमाणुओं के बीच सूक्ष्म इलेक्ट्रोस्टैटिक
अंतःक्रियाओं से बनती है।
शोध में पता चला
कि टीएके1
की यह आंतरिक वायरिंग न केवल उसे कार्य करने में सक्षम बनाती है,
बल्कि एक प्रकार की संदर्भ-आधारित ‘निर्णय लेने की क्षमता’ भी देती है।
इसका मतलब है कि प्रोटीन अन्य अणुओं से प्राप्त रासायनिक संशोधनों या दूर से महसूस
किए गए भौतिक संकेतों को अपने आंतरिक सर्किट के अलग-अलग मार्गों से संसाधित कर सकता
है—यह एक छद्म (Pseudo) बुद्धिमत्ता का व्यवहार है।
छद्म
बुद्धिमत्ता - तयशुदा या सीमित नियमों और संरचनाओं के आधार पर ऐसा व्यवहार करना, जो देखने में बुद्धिमान लगे, लेकिन उसमें आत्म-जागरूकता
या वास्तविक सोच न हो।
औषधि
अनुसंधान में संभावनाएं
चूंकि टीएके1
काइनेज प्रतिरक्षा प्रणाली, सूजन नियंत्रण और कोशिका
अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है, यह पहले से ही कई दवाओं के लिए
एक प्रमुख लक्ष्य है। अब, इसकी ‘बुद्धिमान मशीनरी’ की पहचान से
औषधि विकास में नए और अधिक सटीक तरीकों की संभावना बढ़ गई है।
प्रोफेसर शुभ्रा
घोष दस्तीदार के अनुसार, यह अध्ययन ‘अनुक्रम-संरचना-कार्य’ (Sequence-Structure-Function) के पारंपरिक सिद्धांत को ‘अनुक्रम-संरचना-कार्य-बुद्धिमत्ता’
(Sequence-Structure-Function-Intelligence) तक विस्तार देता है,
जो बायोकेमिस्ट्री में एक मौलिक बदलाव है।
एआई
और बायोकेमिस्ट्री का संगम
इस शोध में मशीन
लर्निंग (ML) तकनीकों का भी उपयोग हुआ,
जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इससे यह स्पष्ट
हुआ कि भविष्य में जैविक अणुओं के अध्ययन और मॉडलिंग में AI का
योगदान लगातार बढ़ेगा।
बोस इंस्टीट्यूट
का यह अध्ययन दिखाता है कि जीवन के निर्माण खंड माने जाने वाले प्रोटीन,
अपने आंतरिक आणविक ढांचे और इलेक्ट्रोस्टैटिक अंतःक्रियाओं के कारण,
संदर्भ-आधारित जटिल प्रतिक्रियाएं देने में सक्षम हो सकते हैं। यह खोज
पारंपरिक ‘अनुक्रम-संरचना-कार्य’ की अवधारणा में एक नया आयाम जोड़ते हुए ‘अनुक्रम-संरचना-कार्य-बुद्धिमत्ता’
की संभावना को रेखांकित करती है। जैव रसायन, आणविक जीव विज्ञान
और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के संगम पर किया गया यह कार्य न केवल प्रोटीन की कार्यप्रणाली
को गहराई से समझने में मदद करेगा, बल्कि आणविक स्तर पर निर्णय
लेने जैसी प्रक्रियाओं को भी वैज्ञानिक दृष्टि से परिभाषित करने में सहायक सिद्ध हो
सकता है।
The News Grit, 08/08/2025
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