बिहार में चुनावी माहौल गरम है और राज्य का युवा मतदाता समूह नौकरी के सवाल पर सबसे संवेदनशील दिखता हैं। राजधानी के विभिन्न हिस्सों में पढ़ते, तैयारी करते और रोजगार की तलाश में लगे कई युवा यही संदेश दे रहे हैं की नौकरी चाहिए। यह वही समस्या है जिस पर सत्ताधारी और विपक्षी दोनों राजनीतिक दल अपने-अपने दावे गढ़ रहे हैं।
कहानी जमीन से
द हिंदू की रिपोर्ट
के अनुसार एपीजे अब्दुल कलाम साइंस सेंटर के बाहर फुटपाथ पर पढ़ते 21 वर्षीय आदित्य कुमार कहते हैं, “अंधा क्या माँगे,
आँखों की रोशनी; बेरोजगार युवा क्या माँगे नौकरी।”
इसी इलाके के मुईन-उल-हक स्टेडियम के पास भी कई युवा शाम को खुले आसमान के नीचे
समूह में पढ़ते हैं वे महज पढ़ाई के लिए नहीं आते, बल्कि
सरकारी नौकरी की तैयारी के लिए एक-दूसरे से प्रेरणा पाने के लिए भी जुटते हैं। ये छात्र
प्रतिमाह ₹3,000 से ₹5,500 तक का
किराया देकर आसपास के गंदी, नमी वाली लॉज और होस्टल में रहते
हैं।
राजनीतिक
वादे और दावे
बिहार के
युवा मतदाताओं को लुभाने के लिए एनडीए और महागठबंधन दोनों ही नौकरियों के वादे
जोर-शोर से कर रहे हैं। राज्य सरकार ने हाल के दिनों में कहा है कि वह विभिन्न
विभागों में लाखों नियुक्ति पत्र वितरित कर चुकी है और मुख्यमंत्री ने कई मंचों पर
आश्वासन दिया कि “आने वाले समय में एक करोड़ और नौकरियाँ दी जाएँगी।” वहीं RJD
नेता तेजस्वी यादव का दावा है कि पिछले महागठबंधन के 17 महीनों के शासनकाल में भी लाखों नौकरियाँ दी गईं और जब उनकी सरकार आएगी
तो और भी बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन होगा।
युवाओं
की नाराजगी: सिर्फ चुनावी मुद्दा?
कई युवाओं को
यह भी आश्चर्य है कि रोजगार का मुद्दा चुनाव के समय ही क्यों जोर पकड़ता है। 23 वर्षीय सौरभ कुमार ने कहा कि बेरोजगारी पर चर्चा हमेशा होनी चाहिए,
न कि केवल चुनाव से पहले। वे तो यह भी पूछते हैं कि जब सरकारें लंबे
समय तक सत्ता में रहती हैं तब रोजगार सृजन के लिए दीर्घकालिक रणनीति क्यों नहीं
बनती।
आँकड़े
क्या कहते हैं
सरकारी सर्वे
और शोध बताते हैं कि बिहार में युवाओं की रोजगार‑स्थिति चिंताजनक है। पीरियॉडिक लेबर
फोर्स सर्वे (PLFS) 2021-22 के अनुसार राज्य की
कुल बेरोजगारी दर 5.9% है जो राष्ट्रीय औसत 4.1% से अधिक है। खासकर 15 से 29
वर्ष के आयु वर्ग में बेरोजगारी बहुत अधिक है 20.1% बनाम देश
का 12.4% यही वजह है कि लाखों लोग बेहतर कमाई की तलाश में
राज्य छोड़कर बाहर जाते हैं।
पटना के
वरिष्ठ सामाजिक शास्त्री डी.एम. दिवाकर ने कहा है कि रोजगार के अवसरों की कमी ने
बड़े पैमाने पर प्रवास को प्रेरित किया है और किसी भी स्पष्ट रणनीति की कमी जमीनी
हकीकत को बढ़ा रही है। जबकि बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के
अर्थशास्त्री सुधांशु कुमार कहते हैं कि युवा अमूमन अनौपचारिक क्षेत्र में लगते
हैं जिनमें आत्म-निर्भर स्वरोजगार या अस्थायी काम शामिल हैं और शहरों में योग्यता के
अनुसार नौकरी न मिलना आम है।
मतदाताओं
में विभाजन
युवा वर्ग के
वोटर चेहरे पर स्पष्ट विभाजन दिखा। कुछ युवाओं का मानना है कि हर पाँच साल में
सत्ता परिवर्तन जरूरी है ताकि नई नीतियाँ आएँ तो कुछ वर्तमान मुख्यमंत्री की
कार्यशैली से संतुष्ट भी दिखे। राजनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर के आगमन को कुछ
युवा सकारात्मक मान रहे हैं, जबकि कई युवा
तेजस्वी यादव की युवा‑अनुरूप
छवि और उनके रोजगार संबंधी वादों को भरा हुआ समझते हैं।
मांगें
नजरिया जमीन पर
कई छात्रों
और युवा कार्यकर्ताओं की स्पष्ट माँगें हैं: सरकारी नौकरियों में अधिक आरक्षण,
100% डोमिसाइल (स्थानीय निवासियों को प्राथमिकता) नीति, और सर्वेक्षणीय स्तर पर स्पष्ट रोजगार योजना। आदित्य कुमार का कहना है कि
जो भी सरकार 14 नवंबर के चुनाव के बाद सत्ता में आए, उसे युवाओं की इन मांगों पर तुरंत ध्यान देना चाहिए।
बिहार के 18–29
आयु वर्ग के लगभग 1.63 करोड़ वोटर (राज्य के
कुल मतदाताओं का लगभग 22%) का निर्णय 2025 के चुनाव परिणामों को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकता है। इस जनसंख्या‑समूह की
प्राथमिकता स्पष्ट है: सशक्त, दीर्घकालिक और
पारदर्शी रोजगार नीतियाँ न कि केवल चुनावी घोषणाएँ। राजनीतिक वादों और सरकारी
दावों की असल परीक्षा तभी होगी जब नियुक्तियों की पारदर्शिता, स्थायित्व और रोजगार के गुणात्मक सुधार पर धरातल पर असर दिखेगा। तब ही
युवा वर्ग का भरोसा जीतना संभव होगा। वरना यह मुद्दा सिर्फ चुनावी वक्तव्य बनकर रह
जाएगा।
The News Grit, 17/10/2025

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