अल्जाइमर रोग के बेहतर, प्रभावी और व्यापक उपचार की दिशा में भारतीय वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। ग्रीन टी में पाए जाने वाले शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट, न्यूरोट्रांसमीटर और अमीनो एसिड को नैनो तकनीक के माध्यम से एकीकृत कर विकसित की गई यह नई विधि अल्जाइमर रोग की प्रगति को धीमा करने, स्मृति में सुधार लाने और विचार व सीखने की क्षमताओं को सशक्त बनाने की क्षमता रखती है। यह खोज ऐसे समय में सामने आई है, जब दुनिया भर में अल्जाइमर एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य चुनौती के रूप में उभर चुका है।
वैश्विक
चुनौती बनता अल्जाइमर रोग
अल्जाइमर रोग
उम्र बढ़ने के साथ तेजी से बढ़ने वाला एक न्यूरोडीजेनेरेटिव विकार है,
जो न केवल मरीजों की जीवन-गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करता
है, बल्कि उनके परिवारों और देखभाल करने वालों पर भी भारी
आर्थिक बोझ डालता है। बुजुर्ग अवस्था में इस समस्या के और गंभीर होने की आशंका है,
जिससे प्रभावी उपचार और निवारक रणनीतियों की आवश्यकता और अधिक
स्पष्ट हो जाती है।
पारंपरिक
उपचारों की सीमाएं
अब तक उपलब्ध
अल्जाइमर के पारंपरिक उपचार सामान्यतः रोग के केवल एक ही पहलू को लक्षित करते हैं, जैसे मस्तिष्क में एमिलॉयड प्रोटीन का जमाव या ऑक्सीडेटिव तनाव। यही कारण
है कि इन उपचारों से सीमित नैदानिक लाभ ही मिल पाता है। जबकि वास्तविकता यह है कि
अल्जाइमर रोग एक बहुआयामी बीमारी है, जिसमें एमिलॉयड
एग्रीगेशन, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस, सूजन
और न्यूरोनल डिजनरेशन जैसे कई रोग-तंत्र एक साथ सक्रिय होते हैं। ऐसे में
वैज्ञानिकों को लंबे समय से ऐसे बहुक्रियाशील उपचार की तलाश थी, जो एक साथ इन सभी कारकों को संबोधित कर सके।
भारतीय
वैज्ञानिकों की बहुआयामी नैनो रणनीति
विज्ञान और
प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान, मोहाली
स्थित नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (INST) के
शोधकर्ताओं ने इस दिशा में एक अभिनव समाधान प्रस्तुत किया है। उन्होंने नैनो तकनीक,
आणविक जीव विज्ञान और कम्प्यूटेशनल मॉडलिंग को एकीकृत करते हुए
अल्जाइमर रोग के लिए एक बहुआयामी चिकित्सा पद्धति विकसित की है।
इस उपचार की
आधारशिला है एपिगैलोकैचिन-3-गैलेट (EGCG),
जो ग्रीन टी में पाया जाने वाला एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है।
इसके साथ डोपामाइन, जो मूड और तंत्रिका संचार के लिए अत्यंत
महत्वपूर्ण न्यूरोट्रांसमीटर है, और ट्रिप्टोफैन, जो कई आवश्यक कोशिकीय कार्यों में शामिल एक अमीनो एसिड है, को एक साथ जोड़ा गया है। इन तीनों को मिलाकर EGCG-डोपामाइन-ट्रिप्टोफैन
नैनोकण (EDTNPs) तैयार किए गए हैं।
चार
प्रमुख रोग-तंत्रों पर एक साथ हमला
ये नैनोकण
अल्जाइमर रोग की चार प्रमुख रोग संबंधी विशेषताओं-
·
एमिलॉयड एग्रीगेशन,
·
ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस,
·
सूजन,
और
·
न्यूरोनल डिजनरेशन-
को एक साथ
लक्षित करने में सक्षम हैं। यही इस तकनीक को पारंपरिक उपचारों से अलग और अधिक
प्रभावी बनाता है।
बीडीएनएफ
के साथ दोहरी क्रियाशीलता
इस शोध को और
अधिक सशक्त बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने ब्रेन-डिराइव्ड न्यूरोट्रॉफिक फैक्टर (BDNF)
को भी इन नैनोकणों में शामिल किया। बीडीएनएफ एक ऐसा महत्वपूर्ण
प्रोटीन है, जो न्यूरॉन्स के अस्तित्व, विकास और कार्य के लिए अनिवार्य माना जाता है।
जब EDTNPs
में बीडीएनएफ को जोड़ा गया, तो एक नया
नैनोप्लेटफॉर्म बना। B-EDTNPs जो दोहरी भूमिका निभाता है। यह
न केवल न्यूरोटॉक्सिक एमिलॉयड बीटा एग्रीगेट्स को साफ करता है, बल्कि तंत्रिका कोशिकाओं के पुनर्जनन को भी प्रोत्साहित करता है। अल्जाइमर
के उपचार में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-एमिलॉयड और न्यूरोट्रॉफिक
क्रियाओं का ऐसा अनूठा संयोजन दुर्लभ माना जा रहा है।
जैव-अनुकूल
तकनीकों से नैनोकणों का निर्माण
इस शोध का
नेतृत्व मोहाली स्थित संस्थान के डॉ. जिबन ज्योति पांडा और उनकी टीम हिमांशु शेखर
पांडा और सुमित ने किया। इसमें डॉ. अशोक कुमार दतुसलिया (NIPER
रायबरेली) और डॉ. निशा सिंह (गुजरात जैव प्रौद्योगिकी
विश्वविद्यालय) का भी महत्वपूर्ण सहयोग रहा।
शोधकर्ताओं
ने EDTNPs
के संश्लेषण के लिए दबाव-समर्थित हाइड्रोथर्मल और इलेक्ट्रोस्टैटिक
आधारित सह-इनक्यूबेशन जैसी जैव-अनुकूल संयोजन तकनीकों का उपयोग किया। इसके बाद इन
नैनोकणों को बीडीएनएफ के साथ क्रियाशील किया गया, जिससे अधिक
प्रभावी न्यूरोप्रोटेक्टिव क्षमता वाले B-EDTNPs तैयार किए
गए।
प्रयोगशाला
और पशु मॉडल में सकारात्मक परिणाम
प्रयोगशाला
परीक्षणों और चूहे के मॉडलों में इन नैनोकणों ने बेहद उत्साहजनक परिणाम दिखाए। शोध
में पाया गया कि ये नैनोकण विषाक्त एमिलॉयड प्लाक को विघटित करते हैं,
मस्तिष्क में सूजन को कम करते हैं, कोशिकीय
संतुलन को बहाल करते हैं और स्मृति व सीखने की क्षमता में उल्लेखनीय सुधार लाते
हैं। इसके अलावा, कम्प्यूटेशनल सिमुलेशन से यह भी पुष्टि हुई
कि ये नैनोकण हानिकारक एमिलॉयड बीटा तंतुओं से सीधे जुड़कर उन्हें आणविक स्तर पर
अलग कर देते हैं।
भविष्य
के लिए नई राह
जर्नल “Small”
में प्रकाशित यह शोध अल्जाइमर रोग के उपचार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण
माना जा रहा है। यह बहुआयामी नैनो-आधारित चिकित्सा न केवल रोग के लक्षणों को
नियंत्रित करने में सहायक हो सकती है, बल्कि दीर्घकाल में
रोगियों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने, देखभाल करने वालों का
बोझ कम करने और अल्जाइमर के लिए अधिक प्रभावी व व्यक्तिगत उपचारों का मार्ग खोलने
की क्षमता भी रखती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह खोज भविष्य में अल्जाइमर के
इलाज की दिशा ही बदल सकती है और करोड़ों मरीजों के लिए नई उम्मीद बनकर सामने आ
सकती है।
प्रकाशन लिंक: https://doi.org/10.1002/smll.202411701
The News Grit, 16/12/2025


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