क्या होगा अगर दुनिया आपके सपनों से पहले आपके निदान को देख ले? अक्षय भटनागर की कहानी इसी सवाल का जवाब देती है-एक ऐसा जवाब जो साहस, समर्पण और मानव गरिमा की नई परिभाषा रचता है।
प्रारंभिक संघर्ष: निदान और पूर्वग्रह
1992 में जब अक्षय का जन्म हुआ, तब ऑटिज्म शब्द भारत में शायद ही किसी ने सुना था। जब माता-पिता ने कुछ व्यवहारगत असमानताएँ देखीं, तो उन्होंने विशेषज्ञों की राय ली। चिकित्सकों ने बाद में अक्षय को ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) से पीड़ित बताया। जागरूकता की कमी और सामाजिक कलंक के बीच यह निदान एक बड़ा झटका था। डॉक्टरों ने अक्षय को बौद्धिक रूप से अक्षम माना, और परिवार में उपहास भी सहना पड़ा।
आखिर क्या है? ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD)
यह एक न्यूरोविकासात्मक विकार है, जो व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार, संवाद (communication) और सोचने-समझने के तरीके को प्रभावित करता है। यह एक "स्पेक्ट्रम" है, जिसका अर्थ है कि इसके लक्षण और प्रभाव हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं – कुछ में यह बहुत हल्के रूप में दिखता है, जबकि कुछ में गहराई से। ASD आमतौर पर बचपन में ही पहचान में आ जाता है, और समय के साथ इसके लक्षण स्पष्ट होते जाते हैं। इसका कारण पूरी तरह ज्ञात नहीं है, लेकिन आनुवंशिकी (genes), मस्तिष्क विकास में अंतर और कुछ पर्यावरणीय कारण इसमें भूमिका निभा सकते हैं।
कुछ अन्य कारणों में गर्भावस्था या जन्म के समय उत्पन्न जटिलताएँ जैसे कम जन्म वजन, समय से पहले जन्म (premature birth), जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी (birth asphyxia), और प्रसव के दौरान मस्तिष्क को लगी क्षति—इन सभी कारकों को भी वैज्ञानिक शोधों में ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) के जोखिम से जोड़ा गया है। ये स्थितियाँ शिशु के मस्तिष्क के सामान्य विकास को बाधित कर सकती हैं, जिससे संज्ञानात्मक, संप्रेषणीय और सामाजिक व्यवहार से जुड़ी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जो आगे चलकर ASD के लक्षणों में प्रकट हो सकती हैं। हालांकि ASD का प्रमुख कारण आनुवंशिक होता है, लेकिन ये जटिलताएँ उसके विकास में सहायक या प्रेरक भूमिका निभा सकती हैं।
ASD के प्रमुख लक्षण:
सामाजिक व्यवहार में कठिनाई: जैसे आँख मिलाने से बचना, दूसरों के साथ बातचीत में रुचि न लेना, भावनाएँ समझने या साझा करने में परेशानी।
• संवाद में परेशानी: बोलने में देरी, एक ही शब्द या वाक्य को बार-बार दोहराना, बातचीत को ठीक से न समझ पाना।
• दोहराव वाले व्यवहार: जैसे एक ही हरकत बार-बार करना (हाथ फड़फड़ाना, चीजें घुमाना), एक जैसी दिनचर्या से चिपके रहना, रुचियों का सीमित होना।
• संवेदनशीलता: तेज आवाज़, रोशनी या स्पर्श के प्रति अत्यधिक प्रतिक्रिया देना।
हालाँकि ASD का इलाज पूरी तरह संभव नहीं है, लेकिन शुरुआती पहचान और सही समर्थन से व्यक्ति की जीवन गुणवत्ता में काफी सुधार किया जा सकता है।
माँ की भूमिका: एक माँ का संकल्प
अक्षय की माँ प्रतिभा भटनागर इस चुनौती के सामने झुकी नहीं। उन्होंने सरकारी नौकरी त्याग दी और खुद को अक्षय की शिक्षा और विकास में समर्पित कर दिया। उन्होंने विशेष शिक्षा और मनोवैज्ञानिक परामर्श की विधिवत शिक्षा ली ताकि अपने बेटे की अधिक प्रभावी ढंग से सहायता कर सकें। उनकी यह निस्वार्थ भूमिका केवल अक्षय के लिए नहीं, बल्कि हजारों अन्य परिवारों के लिए भी एक मिसाल बन गई।
शिक्षा और उपलब्धियाँ: असाधारण उपलब्धियों का सफर
अक्षय ने स्कूल और कॉलेज की मुख्यधारा में दाखिला लेकर समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान और लोक प्रशासन में डिग्री हासिल की। उन्हें राजस्थान विश्वविद्यालय का दूसरा सर्वोच्च शैक्षणिक उत्कृष्टता पुरस्कार प्राप्त हुआ और वे राज्य में ऑटिज्म से ग्रसित पहले छात्र बने जिन्होंने सफलतापूर्वक स्नातक की पढ़ाई पूरी की।
परीक्षा प्रणाली और कानूनी लड़ाइयाँ
शैक्षणिक सफलता के बाद जब अक्षय ने सरकारी परीक्षा में भाग लिया, तब एक नई चुनौती सामने आई-राज्य की नीतियाँ ऑटिज्म से पीड़ित उम्मीदवारों को मान्यता नहीं देती थीं। प्रतिभा ने हार नहीं मानी और 13 कानूनी लड़ाइयाँ लड़ीं। अंततः अक्षय को क्लर्क ग्रेड-2 पद पर राजस्थान सचिवालय में नियुक्ति मिली। यह न सिर्फ अक्षय की जीत थी, बल्कि एक नीतिगत बदलाव की शुरुआत भी।
सामाजिक मान्यता और योगदान
2017 में अक्षय को राजस्थान सरकार का इनक्रेडिबल अचीवर्स अवॉर्ड मिला और अगले वर्ष भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया। एक एथलीट और डांसर के रूप में भी अक्षय ने पदक जीते और यह साबित किया कि न्यूरोडाइवर्जेंस कोई बाधा नहीं, बल्कि एक वैकल्पिक उत्कृष्टता है।
प्रतिभा की दूसरी पारी: एक मिशन की शुरुआत
अब जब अक्षय आत्मनिर्भर हो चुके हैं, प्रतिभा विशेष शिक्षा और काउंसलिंग के क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रही हैं। उन्होंने नीति-स्तर पर बदलाव के लिए आवाज उठाई-अब ऑटिज्म के लिए अलग प्रमाणपत्र जारी किए जाते हैं, जो पहले डाउन सिंड्रोम श्रेणी में दिए जाते थे। वे समाज में जागरूकता फैलाने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं।
इसके अलावा सचिवालय में कर्मचारियों के बीच ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) को लेकर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण पहल की गई, जिसमें यह बताया गया कि अब ऑटिज्म से प्रभावित व्यक्तियों को भी सरकारी नौकरियों में आरक्षण का अधिकार प्राप्त है। यह न केवल अक्षय जैसे विशेष बच्चों के लिए एक प्रेरणादायक अवसर है, बल्कि समाज के लिए यह समझने का भी समय है कि ऐसे बच्चों के साथ सहानुभूतिपूर्ण और समझदारी से पेश आना कितना जरूरी है। इसीलिए, सचिवालय के अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए नियमित रूप से वर्कशॉप आयोजित की जाएंगी ताकि वे ऑटिज्म से जुड़े व्यवहार, संप्रेषण और अधिकारों के प्रति संवेदनशील और सजग बन सकें। यह पहल समावेशी कार्यस्थल की दिशा में एक सराहनीय कदम है।
गरिमा, धैर्य और परिवर्तन
अक्षय की कहानी केवल एक विकलांगता से जूझते व्यक्ति की नहीं, बल्कि मानवीय गरिमा, मातृत्व, नीति-परिवर्तन और सामाजिक समावेश की भी है। यह एक ऐसी यात्रा है, जिसमें एक माँ की आस्था ने विज्ञान, समाज और व्यवस्था को चुनौती दी और एक नई राह दिखाई।
इस #AutisticPrideDay, अक्षय और प्रतिभा जैसे लोगों को सलाम, जो यह साबित करते हैं कि प्रतिभा का कोई लेबल नहीं होता, और न्यूरोडाइवर्जेंस एक सीमा नहीं, एक संभावना है।
The News Grit, 19/06/2025
Comments
Post a Comment