राज्यसभा ने आज भारतीय पत्तन विधेयक, 2025 को पारित कर दिया। यह विधेयक औपनिवेशिक काल के भारतीय पत्तन अधिनियम, 1908 को समाप्त कर भारत के समुद्री क्षेत्र के लिए एक आधुनिक, पारदर्शी और वैश्विक मानकों के अनुरूप ढांचा उपलब्ध कराएगा। लोकसभा द्वारा पहले ही पारित हो चुके इस विधेयक को अब राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा। केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री श्री सर्बानंद सोनोवाल ने इसे “भारत की समुद्री क्षमता को उजागर करने वाला महत्वपूर्ण सुधार” बताते हुए कहा कि यह प्रधानमंत्री मोदी के विकसित भारत 2047 के विज़न को मजबूत करने वाला कदम है।
औपनिवेशिक विरासत से आधुनिक शासन तक
1908 का
पुराना कानून अब तक भारतीय पत्तनों के संचालन का आधार था। इसके स्थान पर लाया गया
नया विधेयक एकीकृत विकास, हरित मानकों और आपदा
तैयारी पर जोर देता है। श्री सोनोवाल ने उच्च सदन में कहा,
“पत्तन केवल
वस्तुओं के प्रवेश द्वार नहीं हैं, बल्कि
विकास, रोजगार और सतत विकास के इंजन हैं। नया कानून भारत को
आधुनिक, अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनुरूप और भविष्य-तैयार
नीतियों की दिशा में ले जाता है।”
दशक
भर का समुद्री विस्तार
पिछले एक दशक
में भारत के समुद्री क्षेत्र ने उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की है। वर्ष 2014-15
में जहाँ प्रमुख पत्तनों पर कार्गो संचालन 581 मिलियन टन था, वहीं 2024-25 में
यह बढ़कर 855 मिलियन टन तक पहुँच गया। इसी अवधि में पत्तन
क्षमता में लगभग 87 प्रतिशत की वृद्धि हुई और जहाज़ों का औसत
टर्नअराउंड समय घटकर 48 घंटे रह गया, जो
वैश्विक मानकों के अनुरूप है। तटीय नौवहन में 118 प्रतिशत की
वृद्धि दर्ज की गई, जबकि अंतर्देशीय जलमार्गों पर कार्गो की
आवाजाही सात गुना से अधिक बढ़ गई। भारत के नौ पत्तनों को विश्व बैंक के कंटेनर
पत्तन प्रदर्शन सूचकांक में स्थान मिलने से उन्हें वैश्विक मान्यता भी प्राप्त हुई
है।
विधेयक
के प्रमुख प्रावधान
भारतीय पत्तन
विधेयक,
2025, कई महत्वपूर्ण प्रावधानों के साथ समुद्री शासन को आधुनिक
बनाने का मार्ग प्रशस्त करता है। इसके तहत समुद्री राज्य विकास परिषद (MSDC)
की स्थापना की जाएगी, जो केंद्र और तटीय
राज्यों के बीच समन्वय सुनिश्चित करने वाला परामर्शदात्री निकाय होगा। राज्यों को
राज्य समुद्री बोर्ड बनाने का अधिकार दिया जाएगा, जिससे
पत्तन शासन का एकसमान और पारदर्शी ढांचा स्थापित होगा। क्षेत्र-विशिष्ट समस्याओं
के त्वरित समाधान के लिए विवाद समाधान समितियाँ गठित की जाएँगी। पर्यावरणीय दृष्टि
से, विधेयक MARPOL और Ballast
Water Management जैसे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के अनुपालन को
अनिवार्य करता है और पत्तनों को आपातकालीन तैयारी योजनाएँ बनाए रखना भी ज़रूरी
होगा। साथ ही, डिजिटलीकरण पर विशेष जोर दिया गया है, जिसके तहत Single Window System और उन्नत Vessel
Traffic Systems लागू किए जाएँगे, ताकि संचालन
अधिक कुशल और पारदर्शी हो सके।
वैश्विक
महत्वाकांक्षाओं की ओर
सोनोवाल ने
कहा कि यह सुधार भारत को सिंगापुर, दक्षिण
अफ्रीका, यूरोपीय संघ और अमेरिका जैसे अग्रणी समुद्री देशों
के बराबर खड़ा करेगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह विधेयक सिर्फ दक्षता ही नहीं
बल्कि संघीय भागीदारी का भी प्रतीक है, जिसमें केंद्र और
राज्य दोनों मिलकर पत्तन-आधारित विकास को आगे बढ़ाएँगे।
2047
तक समुद्री महाशक्ति बनने का लक्ष्य
मोदी सरकार
ने पत्तन-आधारित विकास को अपने अमृत काल रोडमैप का अहम हिस्सा बनाया है। नया कानून
व्यापारिक प्रतिस्पर्धा को मजबूत करेगा, निजी
निवेश आकर्षित करेगा, रोजगार सृजित करेगा और नौवहन में
स्थायित्व लाएगा। राज्यसभा में पारित होने के बाद भारतीय पत्तन विधेयक, 2025 इसे स्वतंत्र भारत के समुद्री इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण संरचनात्मक
सुधारों में से एक के रूप में सराहा जा रहा है। इसका लक्ष्य वर्ष 2047 तक भारत को
विकसित राष्ट्र और हिंद-प्रशांत क्षेत्र का अग्रणी समुद्री देश बनाना है।
भारतीय पत्तन
विधेयक,
2025, औपनिवेशिक कालीन कानून की जगह लेते हुए
देश के समुद्री क्षेत्र में ऐतिहासिक सुधार लेकर आया है। नया कानून पत्तनों के लिए
आधुनिक, हरित और वैश्विक मानकों पर आधारित ढांचा तैयार करता
है, जिससे भारत की व्यापारिक क्षमता को नई गति मिलेगी। देखने
वाली बात यह है कि यह विकसित भारत 2047 की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर
साबित होगा।
भारतीय
पत्तन अधिनियम 1908 और 2025 के बीच मुख्य अंतर
विचार/फीचर
|
भारतीय पत्तन अधिनियम, 1908 (औपनिवेशिक कानून) |
भारतीय पत्तन विधेयक/अधिनियम, 2025 |
वैधानिक निकाय |
कोई विशेष बोर्ड या परिषद
नहीं |
MSDC (समुद्री राज्य
विकास परिषद) और राज्य समुद्री बोर्ड स्थापित किए गए हैं |
विवाद समाधान |
नहीं |
विवाद निवारण समितियाँ (DRC)
एवं उच्च न्यायालय में अपील का प्रावधान |
पर्यावरण और सुरक्षा |
केवल सामान्य सुरक्षा
प्रावधान |
अपडेटेड पर्यावरण और आपदा
प्रबंधन नियम—MARPOL,
Ballast Water Management, कचरा प्रबंधन, ऑडिट्स,
आपात तैयारी |
डिजिटलीकरण और पारदर्शिता |
नहीं |
शुल्क और डेटा की ई-प्रकाशन
व्यवस्था,
संचालन में डिजिटल सिंगल विंडो और पारदर्शिता बढ़ी है |
वित्तीय नीति और निवेश |
पुरानी औपचारिक संरचना |
निजी भागीदारी (PPP),
निवेश आकर्षण, लागत कम, लॉजिस्टिक्स में सुधार |
एकीकृत विकास दृष्टिकोण |
नहीं |
एकीकृत बंदरगाह विकास,
केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय, राष्ट्रीय
योजना बनाना |
गठन और हिस्सेदारी |
प्रमुख व गैर-प्रमुख पोर्ट्स
के बीच सीमित अंतर |
स्पष्ट वर्गीकरण—प्रमुख एवं
गैर-प्रमुख पोर्ट्स; गैर-प्रमुखों में राज्य बोर्डों
की भागीदारी; ‘मेगा पोर्ट’ वर्गीकरण का अधिकार भी जोड़ा
गया |
अपराध और दंड |
जुर्माना,
जेल की सजाएँ; अपील संबंधी व्यवस्था सीमित |
कुछ अपराधों का
डी-क्रिमिनलाइजेशन; जुर्माना/कंपाउंडिंग; पहली बार उल्लंघन पर कंपाउंडिंग; व्यवस्थाओं में
सुधार |
The News Grit, 19/08/2025
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