भारत ने यूनेस्को की संभावित विश्व विरासत सूची में सात नए प्राकृतिक स्थलों को शामिल कर एक बड़ी उपलब्धि दर्ज की है इससे देश के उन स्थलों की संख्या 62 से बढ़कर 69 हो गई। ये कदम देश की जैविक और भूवैज्ञानिक विरासत को अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर मजबूती से पेश करने की दिशा में एक रणनीतिक प्रयास है।
शामिल हुए नए स्थल
1.महाराष्ट्र
– पंचगनी और महाबलेश्वर स्थित डेक्कन ट्रैप:
दुनिया के
कुछ सर्वोत्तम संरक्षित और अध्ययन किए गए लावा प्रवाहों का घर। यह स्थल विशाल
डेक्कन ट्रैप का हिस्सा है और कोयना वन्यजीव अभयारण्य के भीतर स्थित है,
जो पहले से ही यूनेस्को विश्व विरासत स्थल है।
2.
कर्नाटक – सेंट मैरी द्वीप समूह:
दुर्लभ
स्तंभाकार बेसाल्टिक चट्टान संरचनाओं वाला यह द्वीप समूह उत्तर क्रेटेशियस काल
(लगभग 85 मिलियन वर्ष पूर्व) का भूवैज्ञानिक चित्रण प्रस्तुत करता है।
3.मेघालय
– मेघालय युग की गुफाएं:
यहां की
आश्चर्यजनक गुफा प्रणालियां, विशेष रूप से
माव्लुह गुफा, होलोसीन युग में "मेघालय युग" के
लिए वैश्विक संदर्भ बिंदु हैं। ये गुफाएं महत्वपूर्ण जलवायु और भूवैज्ञानिक
परिवर्तनों को दर्शाती हैं।
4.नागालैंड
– नागा हिल ओफियोलाइट:
ओफियोलाइट
चट्टानों का दुर्लभ प्रदर्शन। ये पहाड़ियां महाद्वीपीय प्लेटों पर उभरी हुई
महासागरीय परत का प्रतिनिधित्व करती हैं और टेक्टोनिक प्रक्रियाओं व
मध्य-महासागरीय रिज की गतिशीलता की गहरी जानकारी देती हैं।
5.आंध्र
प्रदेश – एर्रा मट्टी डिब्बालु (लाल रेत की पहाड़ियां):
विशाखापत्तनम
के पास स्थित ये आकर्षक लाल रेत की संरचनाएं अद्वितीय पुरा-जलवायु और तटीय
भू-आकृति विज्ञान संबंधी विशेषताओं को दर्शाती हैं। ये पृथ्वी के जलवायु इतिहास और
गतिशील विकास को उजागर करती हैं।
6.आंध्र
प्रदेश – तिरुमाला पहाड़ियां:
यहां का
एपार्चियन नादुरुस्ती (अनकन्फॉर्मिटी) और सिलाथोरनम (प्राकृतिक मेहराब) अत्यधिक
भूवैज्ञानिक महत्व रखते हैं। यह स्थल पृथ्वी के 1.5 अरब वर्षों से अधिक पुराने
इतिहास का प्रतिनिधित्व करता है।
7.केरल
– वर्कला चट्टानें:
समुद्र तट के
किनारे स्थित इन सुंदर चट्टानों के साथ प्राकृतिक झरने और अपरदनकारी भू-आकृतियां
मायो-प्लियोसीन युग की वर्कल्ली संरचना को दर्शाती हैं। ये स्थल वैज्ञानिक और
पर्यटन दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
संभावित
सूची का अर्थ और अगला कदम
यूनेस्को की
प्रक्रियात्मक भूमिका के अनुसार, किसी भी स्थल को
आधिकारिक रूप से विश्व विरासत सूची में नामांकित करने से पहले उसकी अपनी देशस्तरीय
“संभावित सूची” में मौजूदगी अनिवार्य होती है। यह सूची उस देश की उन स्थलों का
रिकॉर्ड होती है जिन पर आगे पूर्ण नामांकन दायर किए जाने की योजना है; नामांकन के साथ विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन, प्रबंधन
योजना और संरक्षण उपाय भी प्रस्तुत किए जाते हैं। इस आवश्यकता का उद्देश्य
सुनिश्चित करना है कि नामांकन ठोस तैयारी और दीर्घकालिक संरक्षण की गारंटी के साथ
पेश किया जाए।
नामांकन
के लिए कितना समय और क्या चाहिए
सामान्यतः
किसी स्थल को संभावित सूची में दर्ज कर के कम-से-कम एक साल तक इंतज़ार करना पड़ता है,
उसके बाद ही आधिकारिक नामांकन फाइल विश्व विरासत केंद्र को सौंपा जा
सकता है। नामांकन पैकेज में स्थल की “उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य” (Outstanding
Universal Value) का ठोस प्रमाण, कानूनी
सुरक्षा के प्रावधान, मानचित्र, और
व्यापक प्रबंधन-योजना शामिल होनी चाहिए। विशेषज्ञ निकाय इन दस्तावेजों की जांच कर
सुझाव देते हैं और फिर विश्व विरासत समिति अंतिम निर्णय लेती है।
भारत
की तैयारी और स्थानीय एजेंसियाँ
इस अभियान
में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने नोडल
एजेंसी के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ASI ने आवश्यक
दस्तावेज तैयार करने और यूनेस्को में नामांकन जमा करने तक का काम समन्वित किया है।
पेरिस में भारत के स्थायी प्रतिनिधि कार्यालय ने भी इस प्रयास की सराहना जताई है।
ऐसे समन्वय से यह उम्मीद की जा रही है कि इनमें से कुछ स्थलों के लिए भविष्य में
पूर्ण नामांकन दायर कर विश्व विरासत सूची में स्थान दिलाया जा सके।
वैश्विक
मंच पर भारत का बढ़ता प्रभाव
यह कदम उस
व्यापक रणनीति का हिस्सा है जिसके तहत भारत अपनी प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत
को अंतरराष्ट्रीय संरक्षण तंत्रों से जोड़ना चाहता है। उल्लेखनीय है कि भारत ने
जुलाई 2024 में नई दिल्ली में UNESCO World Heritage Committee का 46वाँ सत्र आयोजित भी किया था ऐसे मंचों ने देश
को वैश्विक प्रतियोगियों और विशेषज्ञों के समक्ष अपनी तैयारी पेश करने का अवसर
दिया।
क्या
बदल सकता है और किन चुनौतियों का सामना होगा
हालाँकि
संभावित सूची में शामिल होना पहली बड़ी मंज़िल है, पर असली चुनौती प्रभावी संरक्षण, स्थानीय समुदायों
की भागीदारी और सतत पर्यटन प्रबंधन की होती है। किसी स्थल का विश्व विरासत बनने पर
पर्यटक दबाव, स्थानीय विकास योजनाएँ और संरक्षण-नीतियों के
बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक होगा। हर नामांकन को वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ-साथ
प्रायोगिक संरक्षण व्यवस्था का भी पक्का आश्वासन देना होता है।
यूनेस्को की
संभावित सूची में इन नए प्राकृतिक स्थलों का शामिल होना भारत के लिए केवल गौरव का
विषय नहीं है यह संरक्षण,
शोध और स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर स्थलों के दीर्घकालिक प्रबंधन
की दिशा में भी एक गंभीर प्रतिबद्धता है। अब जो काम आगे है, वह
इन स्थलों के वैज्ञानिक अध्ययन, कानूनी सुरक्षा और ऐसे
प्रबंध-योजना तैयार करने का है जो इन्हें आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखें।
The News Grit, 19/09/2025

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